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Monday, November 3, 2025
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असीम मुनीर इज़राइल गाजा शांति मिशन: असीम मुनीर गाजा ‘शांति मिशन’ के लिए सैनिकों के बदले भीख मांग रहे हैं, पाकिस्तानी पत्रकार का खुलासा


असीम मुनीर इज़राइल गाजा शांति मिशन: गाजा युद्ध के बाद, जब दुनिया शांति की बात कर रही थी, पाकिस्तान ने दावा किया कि वह “गाजा में शांति सैनिक” भेजेगा। इसे फिलिस्तीन के साथ एकजुटता का उदाहरण बताया गया. लेकिन अब इस मिशन पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार अस्मा शिराज़ी ने दावा किया है कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने पाकिस्तानी सैनिकों को गाजा भेजने के बदले में इज़राइल से प्रति सैनिक 10,000 डॉलर की मांग की थी, जबकि इज़राइल ने प्रति सैनिक केवल 100 डॉलर देने की बात कही थी. यहीं पर पूरा “शांति मिशन” बिखर गया

असीम मुनीर इज़राइल गाजा शांति मिशन, शांति मिशन या फायदे का सौदा?

अस्मा शिराज़ी के अनुसार, पाकिस्तान का यह मिशन गाजा में “शांति स्थापना” के नाम पर था लेकिन आंतरिक रूप से यह पैसे का सौदा बन गया। बताया जाता है कि इजरायल और पाकिस्तान के बीच पैसों को लेकर ऐसी लड़ाई हुई कि पूरा मिशन ही रुक गया। यानी ये तो शांति की बात थी, लेकिन झगड़ा पैसे को लेकर हुआ.

इस खुलासे से कुछ दिन पहले ही खबरें आई थीं कि जनरल असीम मुनीर ने मिस्र का गुप्त दौरा किया था. CNN-News18 की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने वहां इजरायली खुफिया एजेंसी और CIA के अधिकारियों से बंद दरवाजे के पीछे मुलाकात की. इसका मकसद गाजा में युद्ध के बाद पाकिस्तान की भूमिका तय करना था. यानी पाकिस्तान गाजा में सैनिक भेजकर उसे “शांति मिशन” का हिस्सा बनाना चाहता था.

‘हम फ़िलिस्तीन के साथ हैं’ या सिर्फ़ छवि परिवर्तन?

पाकिस्तानी सेना ने इस मिशन को फिलिस्तीन के साथ एकजुटता बताया था. लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये वाकई एकजुटता थी या दुनिया के सामने अपनी छवि सुधारने की कोशिश? क्योंकि पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तानी सेना पर देश के भीतर राजनीतिक दमन और अस्थिरता के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में ये मिशन शायद अपनी छवि बचाने की एक कोशिश थी. लेकिन अब इस पर लालच का दाग लग गया है.

आलोचकों का तर्क- ‘मुनाफ़े का मिशन’

कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद पाकिस्तान की पुरानी सोच को दर्शाता है. जहां सेना हर वैश्विक संकट में कोई न कोई राजनीतिक या आर्थिक फायदा तलाश लेती है. आलोचक कह रहे हैं कि पाकिस्तान की सेना बात तो मुस्लिम एकता की करती है, लेकिन असल में उसका मकसद डॉलर कमाना है.

अगर अस्मा शिराज़ी के दावे सच हैं, तो पाकिस्तान का यह तथाकथित “सॉलिडैरिटी मिशन” अब मानवतावादी ऑपरेशन नहीं बल्कि सौदेबाजी की कहानी बन गया है। यह मामला सिर्फ पाकिस्तान और इजराइल के रिश्तों का नहीं है, बल्कि उस सोच का है जिसमें सैनिकों की तैनाती भी पैसे के आधार पर तय की जाती है.

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