बैतूल: Betul News: देश में झोलाछाप डॉक्टरों की बहुतायत पहले से ही चिंता का विषय है लेकिन अब कहानी और भी चौंकाने वाली है. क्योंकि यहां इलाज का कारोबार किसी डॉक्टर ने नहीं बल्कि एक सरकारी शिक्षक ने शुरू किया है. जी हां, बैतूल जिले में एक ऐसा शिक्षक पाया गया है जो शिक्षा देने के लिए सरकार से वेतन तो लेता है लेकिन असल में स्कूल की जगह क्लीनिक चलाता है, जहां वह रोजाना ग्रामीणों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा था. मामला घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के चिखलपाटी गांव का है. यहां कुंडीखेड़ा गांव के प्राइमरी स्कूल में शिक्षक रघुनाथ फौजदार ने अपने घर पर अवैध क्लीनिक खोल रखा था.
शिक्षक बना फर्जी डॉक्टर (बैतूल शिक्षक डॉक्टर)
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जब स्कूल समय में उसके घर पर छापा मारा तो मरीज का इलाज करते हुए रंगेहाथ पकड़ा गया। जांच के दौरान टीम को भारी मात्रा में दवाइयां, इंजेक्शन, ड्रिप सेट और बायोवेस्ट मिला। पूछताछ के दौरान रघुनाथ फौजदार ने खुद स्वीकार किया कि वह पिछले आठ साल से इलाज करा रहे हैं, हालांकि उनके पास न तो कोई मेडिकल डिग्री है और न ही रजिस्ट्रेशन. गांव वालों का कहना है कि वे हर बीमारी का इलाज उसी से कराते हैं, क्योंकि गांव में कोई डॉक्टर नहीं है और रघुनाथ खुद को डॉक्टर बताकर दवाइयां देता है. जो सरकारी शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के बजाय इलाज का धंधा कर रहा है, उसके झोलाछाप के इलाज से किसी की मौत हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार? शिक्षा विभाग? या वह सिस्टम जो ऐसे मामलों पर आंखें मूंद लेता है?
आठ साल से चल रहा था इलाज (Betul false doctor Case)
Betul News: स्वास्थ्य विभाग ने क्लीनिक से बरामद दवाओं और उपकरणों की रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेज दी है. मामले की जांच चल रही है, लेकिन अभी तक निलंबन या गिरफ्तारी की कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. याद रहे हाल ही में परासिया में डॉ. सोनी और ज्योति सोनी के कफ सिरप से 26 मासूम बच्चों की मौत का मामला सामने आया था। अब बैतूल का ये मामला एक बार फिर प्रदेश की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था की लापरवाही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है. एक तरफ सरकार साक्षर भारत-स्वस्थ भारत का नारा देती है और दूसरी तरफ वही व्यवस्था ऐसे झोलाछाप शिक्षकों और डॉक्टरों को पनपने देती है. सवाल ये नहीं है कि कार्रवाई कब होगी, सवाल ये है कि इन झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज में और कितनी जानें जाएंगी.



