मप्र स्थापना दिवस: आज मध्य प्रदेश का 70वां स्थापना दिवस है, जिसे सरकार बड़े पैमाने पर मना रही है. संस्कृति का प्रदेश और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखने वाला मध्य प्रदेश एक बार फिर इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार ने अब राज्य में श्री राम वन गमन पथ की तर्ज पर ‘श्रीकृष्ण गमन पथ’ परियोजना पर काम शुरू कर दिया है. इस परियोजना के तहत भगवान श्री कृष्ण से जुड़े राज्य के ऐतिहासिक स्थलों का विकास किया जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इस पहल में विश्व प्रसिद्ध महर्षि सांदीपनि आश्रम और उज्जैन का नारायण धाम केंद्र में है। यह वही स्थान है जहां भगवान कृष्ण ने अपनी शिक्षा प्राप्त की थी और सुदामा के साथ उनकी मित्रता की नींव रखी थी।
उज्जैन स्थित सांदीपनि आश्रम को भगवान कृष्ण की पाठशाला के रूप में जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार कंस का वध करने के बाद पिता वासुदेव ने श्रीकृष्ण और बलराम को शिक्षा के लिए अवंतिका (उज्जैन) भेज दिया था। उस समय श्रीकृष्ण की आयु केवल 11 वर्ष और सात दिन की थी। यहां उन्होंने गुरु सांदीपनि से मात्र 64 दिनों में सोलह विद्याओं और चौंसठ कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
सांदीपनि आश्रम: जहां गुरु और मित्र की मुलाकात हुई
महर्षि सांदीपनि मूलतः काशी के निवासी थे। जब वे उज्जैन आये तो यहाँ भयंकर अकाल पड़ा। उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने वरदान दिया कि मालवांचल के इस क्षेत्र में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। इसके बाद महर्षि ने इस स्थान पर अपना आश्रम स्थापित किया जिसे चंदन वन के नाम से जाना जाता है। इसी आश्रम में श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने एक साथ शिक्षा प्राप्त की थी। यह स्थान श्रीकृष्ण और सुदामा की अटूट मित्रता का गवाह बना।
आश्रम परिसर में महर्षि की तपोस्थली, सर्वेश्वर महादेव मंदिर और गोमती कुंड आज भी मौजूद हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर गोमती कुंड के पास ‘चौसठ आर्ट गैलरी’ का निर्माण कराया गया है, जहां श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई 64 कलाओं को आकर्षक चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।
नारायणा धाम: दोस्ती की एक अनोखी कहानी
उज्जैन से कुछ दूरी पर महिदपुर तहसील में स्थित नारायण धाम का भी उतना ही पौराणिक महत्व है। यह स्थान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की एक मार्मिक घटना से संबंधित है। कथा के अनुसार एक दिन गुरुमाता ने उन दोनों को जंगल से लकड़ियाँ लाने के लिए भेजा और यात्रा के लिए एक पोटली में दो मुट्ठी चने दिए। जंगल में तेज़ बारिश होने लगी और रात होने पर दोनों एक पेड़ के नीचे रुक गये।
कहा जाता है कि यहीं पर सुदामा ने श्रीकृष्ण के हिस्से के चने भी खाए थे। जिस स्थान पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया वह स्थान आज नारायण धाम के नाम से प्रसिद्ध है। यहां एक भव्य मंदिर बनाया गया है, जिसमें श्रीकृष्ण और सुदामा की सुंदर मूर्तियां हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके द्वारा लाए गए लकड़ियों के गट्ठर आज भी यहां हरे-भरे पेड़ों के रूप में मौजूद हैं।
सरकारी विकास पहल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने श्रीकृष्ण से जुड़े इन स्थानों के विकास के लिए कई कदम उठाये हैं. उन्होंने जन्माष्टमी पर इस्कॉन मंदिर से नारायण धाम तक की यात्रा शुरू की है. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए नारायणा धाम तक जाने वाली सड़क को भी बेहतर बनाया गया है. इसके अलावा जन्माष्टमी पर नारायणा धाम में पुलिस बैंड की प्रस्तुति की भी घोषणा की गई है. ‘श्रीकृष्ण गमन पथ’ परियोजना के तहत इंदौर के जानापाव, धार के अमझेरा और उज्जैन के नारायणा जैसे स्थानों को एक सर्किट के रूप में विकसित किया जाएगा।
आज मध्य प्रदेश स्थापना दिवस के कार्यक्रमों में सरकार की ओर से श्रीकृष्ण पथ गण की झांकी भी दिखाई जाएगी. निश्चित रूप से सरकार द्वारा की गई पहल न केवल वर्तमान की भव्यता को बढ़ाएगी बल्कि युवाओं को ईश्वर और सांस्कृतिक इतिहास से भी अवगत कराएगी।



