जरा सोचिए… एक ऐसा मंदिर जहां पूजा-अर्चना के बीच ऐसे सबूत भी मिलते हैं जो कभी आस्था नहीं बल्कि महिलाओं की बेबसी की निशानी हैं। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के सिंहपुर क्षेत्र में स्थित पंचमठा मंदिर आज सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि इतिहास के ऐसे कड़वे सच का गवाह है जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
एक समय की बात है, भक्ति के नाम पर महिलाओं को सती होने के लिए मजबूर किया जाता था, यानी पति की मृत्यु के बाद उनकी चिता में जिंदा जला दिया जाता था। आज भी मंदिर परिसर में पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां उस काल की दर्दनाक कहानी बयां करती हैं।
सती चबूतरों में नारी का मौन रुदन कैद है
पंचमठा मंदिर परिसर में मौजूद सती चबूतरे वक्त की मार झेलते हुए आज भी खामोश खड़े हैं। इन चबूतरों पर महिलाओं और पक्षियों की आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो उस काल में सती हुई महिलाओं की याद में बनाई गई थीं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके पूर्वजों के समय में यहां कई महिलाएं अपने पतियों की चिता पर सती हो जाती थीं। उस समय इसे समाज में सदाचार और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता था। लेकिन इन प्लेटफॉर्म्स को देखकर अब सवाल उठता है कि क्या वाकई श्रद्धा का मतलब अपनी जान देना था? आज ये चबूतरे टूटे हुए हैं, काई से ढके हुए हैं और रख-रखाव के अभाव में विरासत सूची में उल्लेख मात्र बनकर रह गये हैं।
पुरातत्व विभाग की उपेक्षा और इतिहास के बिखरते साक्ष्य
स्थानीय लोगों का कहना है कि पंचमठा मंदिर परिसर को कई साल पहले पुरातत्व विभाग के अधीन घोषित कर दिया गया था. लेकिन आज हालत यह है कि दीवारें टूटी हुई हैं, शिलालेख क्षतिग्रस्त हैं और सूचना बोर्ड गायब हैं। इस स्थान के महत्व से अनजान कई लोग यहां पूजा करने या पिकनिक मनाने पहुंचते हैं। इस ऐतिहासिक स्थल की दुर्दशा देखकर ऐसा लगता है कि हम अपनी विरासत को धीरे-धीरे लुप्त होने दे रहे हैं।
सती प्रथा: भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय
मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड, मालवा और महाकौशल क्षेत्र में सती प्रथा के सैकड़ों प्रमाण मिलते हैं। शहडोल का पंचमाथा मंदिर भी इन्हीं महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है।
इतिहासकारों के अनुसार सती प्रथा भारतीय समाज में चौथी शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक जारी रही। कई जगहों पर इसे धर्म और मर्यादा का रूप दे दिया गया, जबकि हकीकत में यह महिला उत्पीड़न का भयावह चेहरा था। जब कोई स्त्री सती होती थी तो उसके नाम पर सती स्तंभ या चबूतरा बनाया जाता था। इन पत्थरों पर उनकी आकृति या पक्षी की आकृति बनाई गई, जिसे बाद में एक पवित्र स्थान माना गया।
राजा राममोहन राय और ब्रिटिश शासन का कानून
19वीं सदी की शुरुआत में राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को अमानवीय और क्रूर मानते हुए इसके खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। उनके प्रयासों से प्रभावित होकर ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड विलियम बेंटिक ने वर्ष 1829 में आधिकारिक तौर पर सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। इस कानून के बाद भी कुछ क्षेत्रों में यह प्रथा गुप्त रूप से जारी रही, लेकिन धीरे-धीरे समाज ने इसे अस्वीकार करना शुरू कर दिया। राजा राममोहन राय के इस कदम ने भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष की नींव रखी।
आस्था और अंधविश्वास के बीच फंसा सच
सिंहपुर के पंचमाथा मंदिर की कहानी आज भी समाज को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आस्था और अंधविश्वास की सीमाएं कहां खत्म होती हैं। कभी यहां महिलाएं पवित्रता के नाम पर खुद को जला लेती थीं, आज उसी स्थान पर लोग मन्नतें मांगने आते हैं। इतिहास का यह विरोधाभास बताता है कि समाज तो विकसित हुआ, लेकिन मानवता और स्मृति की संवेदनशीलता बहुत पीछे छूट गयी। कई पुरातत्वविदों का मानना है कि अगर इस मंदिर को ठीक से संरक्षित किया जाए तो यह महिलाओं के इतिहास के अध्ययन और सामाजिक सुधार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है।



