इंदौर, 21 अक्टूबर (भाषा) मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में दिवाली की धार्मिक परंपरा से जुड़े हिंगोट युद्ध में मंगलवार शाम करीब 35 लोग घायल हो गये। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) डॉ. वंदना केसरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में हिंगोट युद्ध के दौरान करीब 35 योद्धा जल गये थे.
उन्होंने बताया कि इनमें से दो गंभीर मरीजों को देपालपुर के एक अस्पताल में भेजा गया. केसरी ने बताया कि हिंगोट युद्ध के दौरान इनमें से एक व्यक्ति का हाथ टूट गया, जबकि दूसरे व्यक्ति की नाक पर चोट लगी.
बीएमओ ने बताया कि अन्य योद्धा मामूली रूप से घायल हुए थे, जिन्हें मौके पर पहले से मौजूद मेडिकल टीम ने प्राथमिक उपचार देकर उनके घर भेज दिया।
हिंगोट युद्ध देखने के लिए गौतमपुरा कस्बे में बड़ी संख्या में दर्शक जुटे, जिनकी सुरक्षा के लिए प्रशासन के साथ पुलिस ने युद्ध स्थल पर जरूरी इंतजाम किये थे.
अनुविभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीओपी) संगप्रिय सम्राट ने कहा कि दर्शकों की सुरक्षा के लिए हिंगोट के युद्धक्षेत्र के चारों ओर ऊंचे जाल और बैरिकेड लगाए गए थे और स्थिति पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे।
एसडीओपी ने बताया कि मौके पर करीब 200 पुलिसकर्मी और करीब 100 प्रशासन के जवानों की तैनाती के साथ ही पर्याप्त संख्या में दमकल गाड़ियां और एंबुलेंस भी तैयार रखी गई थीं.
हिंगोट आंवले के आकार का एक जंगली फल है और इस फल का गूदा निकाल कर इसे खोखला कर दिया जाता है। फिर इसे सुखाकर इसमें विशेष तरीके से बारूद भर दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि जैसे ही इसमें आग लगाई जाती है तो यह रॉकेट जैसे पटाखे की तरह बहुत तेज गति से छूटता है और लंबी दूरी तय करता है।
पारंपरिक हिंगोट युद्ध के दौरान गौतमपुरा के योद्धाओं के समूह का नाम ‘तुर्रा’ होता है, जबकि रुंजी गांव के योद्धा समूह का नेतृत्व ‘कलंगी’ करते हैं। पारंपरिक युद्ध के दौरान दोनों समूहों के योद्धा एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं।
हिंगोट युद्ध में हर साल लोग घायल होते हैं.
पिछले कुछ वर्षों में इस पारंपरिक आयोजन में गंभीर रूप से जलने के कारण कुछ लोगों की मौत हो गई है।
माना जा रहा है कि प्रशासन हिंगोट युद्ध पर इसलिए रोक नहीं लगा पा रहा है क्योंकि इस परंपरा से स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं.
स्थानीय लोगों ने बताया कि हिंगोट युद्ध की परंपरा इंदौर के पूर्ववर्ती होल्कर राजवंश के समय से पिछले 300 वर्षों से चली आ रही है.
किंवदंती के अनुसार, हथियार के रूप में बारूद से भरे हिंगोट का उपयोग स्थानीय गुरिल्ला योद्धाओं द्वारा शुरू किया गया था, जो मुगल आक्रमणकारियों पर उनके घुड़सवारों को तत्कालीन होल्कर साम्राज्य की सीमाओं में प्रवेश करने से रोकने के लिए गुप्त रूप से हिंगोट फायर करते थे।
भाषा हर्ष जीतेन्द्र
जितेंद्र