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Monday, November 17, 2025
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पूजा के दौरान 99% लोग करते हैं कलावा से जुड़ी ये गलती, आज जानें किस्मत पर पड़ेगा सीधा असर


भारतीय संस्कृति में कलावा, जिसे मौली, रक्षा सूत्र या राखी भी कहा जाता है, केवल एक धागा नहीं बल्कि आस्था, परंपरा और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। पूजा, व्रत, हवन या किसी धार्मिक अनुष्ठान के बाद इसे बांधते समय लोगों की यह भावना होती है कि यह धागा उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाएगा और जीवन में सौभाग्य लाएगा। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पवित्र धागे से जुड़ी कुछ विशेष मान्यताएं हैं जिनका पालन न करने पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। कई बार लोग अनजाने में कई महीनों तक हाथों में कलावा बांध कर रखते हैं, जबकि शास्त्र इसके प्रति सचेत करते हैं।

खास बात यह है कि कलावा व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा को भी प्रभावित करता है। यह अपने अंदर सकारात्मक तरंगों को समेटे हुए होता है, लेकिन समय के साथ इसकी शक्ति कम होने लगती है और यही वह मोड़ होता है जब इसके अशुभ प्रभावों की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि कई पंडित और पुजारी समय-समय पर समझाते रहे हैं कि कलावा न केवल आस्था का धागा है, बल्कि इसे सही समय पर उतारना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मार्गदर्शन की इस श्रृंखला में आज हम समझते हैं कि कलावा कितने समय तक रखना चाहिए, क्यों रखना चाहिए और कब हटा देना चाहिए ताकि शुभता बनी रहे।

कलावा बांधते समय की गई गलतियां कैसे आपकी किस्मत बिगाड़ सकती हैं

हिंदू परंपरा में प्रत्येक अनुष्ठान का एक विशिष्ट शास्त्रीय नियम होता है और कलावा बांधना भी इसी सिद्धांत के अंतर्गत आता है। लेकिन कई लोग जल्दबाजी में या अज्ञानता के कारण कुछ गलतियां कर बैठते हैं जिससे कलावा की ऊर्जा कमजोर हो जाती है। यह धागा तभी प्रभावी होता है जब इसे मंत्रोच्चार के साथ उचित विधि से बांधा जाए।

सबसे पहली गलती जो लोग अक्सर करते हैं वो ये है कि कलावा बांधते समय वो सिर ढकना भूल जाते हैं। वैदिक परंपरा के अनुसार पवित्र मंत्रों का प्रभाव केवल सिर ढककर ही सर्वोत्तम रूप से प्राप्त किया जा सकता है, अन्यथा ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है। दूसरी गलती खुली मुट्ठी से हाथ फैलाना है। अपनी मुट्ठी बंद रखने का मतलब है कि आप नकारात्मक ऊर्जा को पीछे छोड़ रहे हैं और सकारात्मक ऊर्जा को स्वीकार कर रहे हैं।

तीसरी आम गलती यह है कि लोग बिना किसी नियम के कलावा बांधते हैं जबकि शास्त्रों में इसे तीन बार लपेटने का नियम है। तीन आवरणों को त्रिमूर्ति, त्रिमूर्ति और तीनों लोकों की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो व्यक्ति को हर दिशा से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यदि इन नियमों का पालन नहीं किया गया तो कलावा अपने वास्तविक प्रभाव तक नहीं पहुंच पाएगा और इसके परिणाम कमजोर या विपरीत भी हो सकते हैं।

कलावा कितने दिन तक रखना चाहिए?

ज्यादातर लोगों का मानना ​​है कि एक बार कलावा बांधने के बाद इसे महीनों या सालों तक हाथ में छोड़ा जाना चाहिए। लेकिन वैदिक मान्यताओं के अनुसार यह बिल्कुल गलत है। शास्त्रों में कहा गया है कि कलावा को अधिकतम 21 दिनों तक हाथ में रखना शुभ माना जाता है।

यह अवधि इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि 21 दिनों में धागा वातावरण, शरीर और ऊर्जा के संपर्क में आकर अपनी अधिकांश ताकत खो देता है। इस दौरान यह लगातार नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करता है, जिससे इसकी सुरक्षात्मक क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है।

यदि कलावा फीका पड़ने लगे, धागा घिसने लगे या गंदा हो जाए तो यह संकेत है कि उसने अपनी सारी शक्ति खर्च कर दी है। ऐसे में इस धागे को हाथ में रखना अशुभ प्रभाव दे सकता है। कई लोगों की किस्मत इसलिए भी अटक जाती है क्योंकि वे इस धागे को महीनों तक हाथ में बांधे रखते हैं, जबकि शास्त्रों द्वारा निर्धारित समय पूरा होने के बाद इसे हटा देना चाहिए।

कलावा धारण करने का सही तरीका और इसके पीछे की आध्यात्मिक भावना

कई बार लोग कलावा उतारते समय इसे कहीं भी फेंक देते हैं, जबकि यह बहुत बड़ी गलती मानी जाती है। कलावा उतारते समय सबसे पहले आपको उसे प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि यह धागा आपको लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान करता है और नकारात्मक शक्तियों को अपने अंदर समाहित कर लेता है। इसे अनादरपूर्वक हटाना अशुभ माना जाता है।

कलावा उतारने की दो उचित विधियां हैं। सबसे पहले इसे साफ बहते जल में प्रवाहित कर दें। पानी को सदियों से पवित्र माना गया है और यह धागे में जमा नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर देता है। दूसरा तरीका यह है कि इसे आदरपूर्वक किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में रख दिया जाए। ऐसा करने से धागे की बची हुई ऊर्जा प्रकृति में विलीन हो जाती है। ध्यान रखें कि कलावा को कभी भी जूते-चप्पल के पास, कूड़ेदान में या घर के किसी कोने में नहीं फेंकना चाहिए। ऐसा करना पितरों, देवताओं और आपकी रक्षा करने वाले सूत का अपमान माना जाता है।

आधुनिक समय में कलावा परंपरा

आज की पीढ़ी अक्सर इसे सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा मानती है, लेकिन कलावा का महत्व इससे कहीं ज्यादा गहरा है। आधुनिक ऊर्जा विज्ञान भी मानता है कि लाल धागा शरीर की ऊर्जा को स्थिर करने में सक्षम है। यह उंगलियों के पास की नसों और नसों पर हल्का दबाव डालकर मन को शांत करता है।

यही कारण है कि कलावा पहनने पर कई लोग मानसिक स्थिरता, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का अनुभव करते हैं। लेकिन यह प्रभाव तभी रहता है जब समय पर धागा बदला जाए और उसकी पवित्रता बनी रहे। ऊर्जा विज्ञान के अनुसार, पुराना, टूटा हुआ या गंदा धागा शरीर की ऊर्जा को सोख सकता है और उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसलिए यह परंपरा न केवल भावनात्मक या आध्यात्मिक रूप से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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