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Wednesday, October 22, 2025
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चित्रकूट गधा मेला: ‘लॉरेंस विश्नोई’ पर लगी सबसे महंगी बोली, 90 हजार रुपये में बिके ‘सलमान खान’, ऐतिहासिक गधा मेले में मशहूर हैं फिल्मी नाम


चित्रकूट: सतना जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में दीपावली पर्व के अवसर पर लगने वाले पांच दिवसीय दीपदान मेले के दौरान दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव के साथ मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाला ऐतिहासिक गधा बाजार (मेला) अपनी पुरानी परंपरा और भव्यता के साथ सज गया.

सदियों पुराना यह मेला अपनी अनोखी पहचान और अनूठी परंपरा के कारण दूर-दूर तक मशहूर है। जानकारी के मुताबिक यह गधा बाजार मुगल शासक औरंगजेब के समय से ही लगता आ रहा है. कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में सेना के लिए गधे और खच्चर चित्रकूट से खरीदे जाते थे। यहां के व्यापारी आज भी उस परंपरा को संजोए हुए हैं।

कई राज्यों से व्यापारी गधों और खच्चरों के साथ पहुंचे।

चित्रकूट गधा मेले में इस साल भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत कई राज्यों से व्यापारी हजारों गधों और खच्चरों के साथ पहुंचे हैं. नगर पालिका परिषद चित्रकूट की ओर से मेले की औपचारिक व्यवस्थाएं की गई हैं, लेकिन मैदान में व्यवस्थाओं की पोल खुलती नजर आई। मेले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां गधों और खच्चरों को फिल्मी सितारों और मशहूर लोगों के नाम से बुलाया जाता है। इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले खच्चर का नाम “लॉरेंस विश्नोई” रहा, जिसकी बोली 1 लाख 25 हजार रुपये तक पहुंच गई.

90 हजार रुपये में बिका “सलमान खान” नाम का गधा

वहीं, “सलमान खान” नाम का गधा 90 हजार रुपए में बिका और “शाहरुख खान” को 80 हजार रुपए में नया मालिक मिल गया। कई अन्य जानवरों को कैटरीना, माधुरी और चंपकलाल जैसे नाम दिए गए, जिन पर खरीदारों ने जमकर बोली लगाई। लेकिन खूबसूरती के बीच कई परेशानियां भी छिपी होती हैं। मंदाकिनी के तट पर लगने वाले इस मेले में गंदगी, पानी और छाया जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था.

व्यापारियों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण उन्हें भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है. व्यापारियों ने कहा कि मेले में आने वाले प्रत्येक व्यापारी से 600 रुपये प्रति पशु और 30 रुपये प्रति खूंटा प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है, जबकि बदले में कोई सुविधा नहीं दी जा रही है. सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर होम गार्ड भी तैनात नहीं हैं।

स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि अगर प्रशासन ने जल्द ही ध्यान नहीं दिया तो यह सदियों पुरानी परंपरा खत्म होने की कगार पर आ जाएगी. फिलहाल, चित्रकूट का यह गधा मेला आज भी अपनी भव्यता से भरपूर है, लेकिन इस भव्यता के पीछे छिपी अव्यवस्था, उपेक्षा और प्रशासनिक उदासीनता धीरे-धीरे इसकी चमक फीकी कर रही है।

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