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Wednesday, November 5, 2025
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गलत शपथ पत्र देने पर हाईकोर्ट ने शहडोल कलेक्टर केदार सिंह पर लगाया 2 लाख रुपए का जुर्माना, वकील ने कहा- रेत ठेकेदार के दबाव में हुई कार्रवाई.


शहडोल: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बड़ी कार्रवाई करते हुए शहडोल कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने यह आदेश झूठा हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को गुमराह करने के एक मामले में दिया है. साथ ही कलेक्टर के खिलाफ अवमानना ​​नोटिस भी जारी किया गया है.

न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जुर्माने की यह राशि कलेक्टर को सरकारी खजाने से नहीं बल्कि अपने निजी खाते से जमा करनी होगी। यह पूरा मामला एक युवक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत की गई गलत कार्रवाई से जुड़ा है.

क्या है पूरा मामला?

यह मामला शहडोल जिले के ब्यौहारी तहसील के ग्राम समान निवासी सुशांत बैस से जुड़ा है। सुशांत के पिता हीरामणि बैस ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि प्रशासन ने गलत तरीके से उनके बेटे को एनएसए के तहत हिरासत में लिया है.

याचिका के मुताबिक, जिला पुलिस अधीक्षक ने नीरजकांत द्विवेदी नाम के व्यक्ति पर एनएसए लगाने की सिफारिश की थी. लेकिन कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने गलती से सुशांत बैस के नाम पर आदेश जारी कर दिया, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।

कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश

मामले की सुनवाई के दौरान कलेक्टर और एसपी कोर्ट में पेश हुए. उनकी दलीलों के बाद कोर्ट ने एसीएस (गृह विभाग) शुक्ला को हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया था. एसीएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कलेक्टर कार्यालय के एक क्लर्क से टाइपिंग में गलती हो गई है, जिसके लिए संबंधित कर्मचारी को नोटिस दिया गया है.

हालांकि, कोर्ट इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ. कोर्ट ने पाया कि कलेक्टर ने अपने हलफनामे में जिस अपराध का जिक्र किया था, उसका मामला पहले ही बंद हो चुका है. इसके अलावा, पेश किए गए गवाहों के बयान भी वर्ष 2022 के थे और उनका वर्तमान मामले से कोई लेना-देना नहीं था।

मानवीय पक्ष भी सामने आया

याचिकाकर्ता के वकील ब्रह्मेंद्र प्रसाद पाठक ने कोर्ट को बताया कि इस प्रशासनिक लापरवाही का सुशांत के परिवार पर गहरा असर पड़ा. फरवरी में सुशांत की शादी हुई और सितंबर में जब उन पर एनएसए लगाया गया, तब उनकी पत्नी गर्भवती थीं. उनकी बेटी का जन्म मार्च में हुआ था, लेकिन हिरासत में होने के कारण सुशांत अपनी नवजात बेटी को देख भी नहीं पाए थे.

कोर्ट ने इस पूरे मामले को गंभीर प्रशासनिक लापरवाही करार दिया. कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की आजादी के साथ इस तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत करने पर कलेक्टर केदार सिंह को अवमानना ​​नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से जुर्माना भरने का आदेश दिया गया।

वकील बोले, रेत ठेकेदार के दबाव में कलेक्टर ने की कार्रवाई

मामले पर बात करते हुए सुशांत के वकील रामेंद्र पाठक ने कहा कि रेत ठेकेदारों के दबाव में कलेक्टर ने यह कार्रवाई की है. जिला प्रशासन ने मनमानी करते हुए सुशांत पर एनएसए लगा दिया, जिसका कोई वैदिक आधार नहीं था. पाठक ने कहा कि यह आदेश नियम-कानूनों को दरकिनार कर जारी किया गया था, जिसके कारण सुशांत को एक साल तक जेल में रहना पड़ा.

एनएसए किस आधार पर कार्रवाई करता है?

किसी भारतीय व्यक्ति पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने के तीन मुख्य आधार हैं, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था और आवश्यक सेवाओं में बाधा उत्पन्न करना शामिल है। अगर सरकार को लगता है कि कोई भी व्यक्ति इन तीन बिंदुओं के तहत प्रभाव डाल सकता है तो उसे बिना किसी अनुमति के 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है. हालांकि, सरकार को 5 दिन के अंदर इसका कारण बताना होगा. गिरफ्तार व्यक्ति को सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करके अपील करने का अधिकार दिया जाता है।

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