कंस वध उत्सव शाजापुर: शाजापुर: जिले में लगभग 272 वर्ष पुरानी कंस वधोत्सव की परंपरा का निर्वहन इस वर्ष 31 अक्टूबर को किया गया। यह आयोजन मथुरा के बाद शाजापुर में सबसे बड़े पैमाने पर होता है, जिसे देखने के लिए मध्य प्रदेश के कई जिलों से लोग आते हैं. कंस वधोत्सव की यह परंपरा लगभग 272 साल पहले शुरू हुई, जब श्री गोवर्धननाथ मंदिर के प्रमुख स्वर्गीय मोतीरामजी मेहता ने मथुरा में कंस वधोत्सव देखा और इसे शाजापुर में भी आयोजित करने का निर्णय लिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल दिवाली के बाद आने वाली दशमी को मनाई जाती है।
इस प्रसंग में श्रीकृष्ण और कंस के बीच वाकयुद्ध का मंचन किया जाता है, जिसमें दोनों पात्र अपने-अपने तर्क और वक्तव्य प्रस्तुत करते हैं। जुलूस बालवीर हनुमान मंदिर से शुरू होता है, जिसमें युवाओं और वरिष्ठों को श्री कृष्ण और कंस के रूप में सजाया जाता है। रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध किया जाता है, जो इस आयोजन का मुख्य आकर्षण है। परंपरा के अनुसार कंस को लाठियों से मारा जाता है और उस पर लाठियां बरसाई जाती हैं।
कंस वध उत्सव शाजापुर: कंस वध उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है. यह आयोजन शाजापुर की सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा माना जाता है और लोगों में इसके प्रति गहरी आस्था और उत्साह देखने को मिलता है।
इस उत्सव के आयोजन की तैयारियां बड़े पैमाने पर की जाती हैं. सोमवारिया बाजार स्थित कंस चौराहे पर कंस का पुतला लगाया जाता है और जुलूस के लिए श्रीकृष्ण और कंस के स्वरूप की विशेष सजावट की जाती है। कंस वधोत्सव शाजापुर की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि शाजापुर की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है।



