उज्जैन: उज्जैन गधा मेला: कार्तिक माह के शुभ अवसर पर उज्जैन में पारंपरिक गधा मेला इस साल भी धूमधाम से शुरू हो गया है। यह मेला अपनी अनोखी परंपरा के लिए न सिर्फ प्रदेश में बल्कि पूरे देश में मशहूर है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मेले की शुरुआत गधों की पूजा कर उन्हें गुलाब जामुन खिलाकर की जाती है. इस बार भी उसी रस्म के साथ गधों की बिक्री शुरू हुई और मेला उत्सवी माहौल में रंग गया.
नामों में चुनाव और फिल्म का प्रभाव
गढ़ों का मेला: मेले में देशभर से 500 से ज्यादा गधे और 200 घोड़े बिकने के लिए पहुंचे हैं. ये जानवर शाजापुर, सुसनेर, मक्सी, सारंगपुर, भोपाल के अलावा राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से लाए गए हैं। वहीं, अमरावती, अरनी, मालेगांव और सिरपुर से घोड़े पहुंचे हैं. हर साल की तरह इस बार भी गधों के दिलचस्प नामों ने लोगों को आकर्षित किया है. कुछ गधों के नाम तेजस्वी, ओवेसी और पुष्पा रखे गए हैं तो कुछ के नाम सलमान, शाहरुख, ऐश्वर्या, जैकलीन और शबनम रखे गए हैं। व्यापारियों का कहना है कि यह रणनीति खरीदारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए की गई है। हर गधे की पीठ पर उसका नाम रंगीन अक्षरों में लिखा होता है।
पूजा की शुरुआत गुलाब जामुन से हुई
उज्जैन गधा मेला: पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ शुरू हुआ मेला. गधों को नहलाया गया, उनके माथे पर तिलक लगाया गया और उन्हें गुलाब जामुन खिलाए गए और उनकी पूजा की गई। इसके बाद ही खरीद-फरोख्त का सिलसिला शुरू हुआ. स्थानीय लोगों का मानना है कि इस तरह से पूजा करने से गधों का कारोबार शुभ और लाभदायक हो जाता है. इस बार मेले में गधों की कीमत उनकी उम्र, ताकत और कार्य क्षमता के आधार पर तय की जा रही है. सामान्य गधों की कीमत 4,000 रुपये से 15,000 रुपये तक होती है, जबकि छोटे घोड़े 10,000 रुपये से 20,000 रुपये तक बिकते हैं. व्यापारियों का कहना है कि खरीदार गधे के दांत देखकर उसकी उम्र और ताकत का अंदाजा लगाते हैं और उसी के अनुसार सौदा तय करते हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गधों की अहम भूमिका
गधों का मेला: गधों का यह मेला सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में गधों का उपयोग निर्माण कार्यों, ईंट भट्टों, खेतों और सामान ढोने के लिए किया जाता है। उन्हें सस्ता, विश्वसनीय और मेहनती माना जाता है। इसीलिए इस मेले की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और यह हर साल पशुपालकों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक अवसर बन जाता है।


                                    
