पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर राज्य की राजनीति में एनडीए की मजबूत पकड़ को साबित कर दिया है। इस बार एनडीए ने 202 सीटें लेकिन जीत हासिल कर उसने स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने का रास्ता साफ कर लिया.
बीजेपी के पास है 89 सीटेंजबकि जदयू 85 सीटें जीत हुई, जिससे पता चलता है कि गठबंधन की संयुक्त रणनीति और नेतृत्व समन्वय पूरी तरह सफल रहा.
वहीं, महागठबंधन के लिए यह चुनाव काफी निराशाजनक साबित हुआ. सिर्फ राजद 25 सीटें लेकिन कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों का प्रदर्शन भी औसत ही रहा.
हर वोट ने बदले समीकरण – स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवार की छवि ने निभाई निर्णायक भूमिका
बिहार चुनाव के इस चरण ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि मतदाता पहले से कहीं अधिक जागरूक, निष्पक्ष और मुद्दा-आधारित निर्णय लेने वाले हो गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार जनता के पास-
- सिर्फ जातीय समीकरण
- बड़े वादे
- या फिर स्टार प्रचारकों की भीड़
पर भरोसा करने के बजाय स्थानीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता, उनकी कार्यशैलीऔर गठबंधन की रणनीति को महत्व दिया.
करीबी मुकाबलों में कई सीटों पर जीत का अंतर सैकड़ों वोटों का था, जिससे चुनाव और भी रोमांचक और प्रतिस्पर्धी हो गया.
एलजेपी का शानदार प्रदर्शन (रामविलास): बख्तियारपुर और बलरामपुर में जीत से बदले समीकरण.
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने इस चुनाव में अपने अस्तित्व और प्रभाव दोनों का जोरदार प्रदर्शन किया है.
कई सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों ने बेहद नजदीकी मुकाबलों में जीत हासिल की.
प्रमुख जीत:
- बख्तियारपुर — अरुण कुमार ने बहुत ही कम अंतर से जीत हासिल कर पार्टी की ताकत दिखाई।
- बलरामपुर — कड़े मुकाबले में विजय ने एलजेपी (आर) की लोकप्रियता को कड़ा संदेश दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि एलजेपी (आर) के उभरते समर्थन आधार ने एनडीए की कुल सीटों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कांग्रेस ने भी दिखाई ताकत – चनपटिया और फारबिसगंज में रोमांचक जीत.
भले ही कांग्रेस राज्य स्तर पर बड़ा प्रदर्शन नहीं कर पाई, लेकिन चुनिंदा सीटों पर उसने जोरदार वापसी की.
- चनपटिया बेहद करीबी मुकाबले में अभिषेक रंजन ने जीत हासिल की.
- फोर्बेस्गंज मनोज विश्वास ने कड़े मुकाबले में अपने प्रतिद्वंदियों को हराया.
इन जीतों से पता चला कि कांग्रेस अभी भी कुछ क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाए हुए है।
नतीजों ने दिया बड़ा संकेत – बिहार की राजनीति और भी प्रतिस्पर्धी हो गयी.
चुनाव नतीजों से यह साफ हो गया है कि बिहार का राजनीतिक माहौल तेजी से बदल रहा है.
एनडीए ने जहां प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया है, वहीं विपक्ष को अब अपनी रणनीति और संगठन दोनों पर नए सिरे से गौर करने की जरूरत है.
इन नतीजों से तीन बड़े संदेश निकलते हैं:
1. हर वोट का महत्व बढ़ गया है
नजदीकी मुकाबलों में, प्रत्येक मतदाता की पसंद परिणाम को बदलती हुई प्रतीत हुई।
2. गठबंधन की राजनीति पहले से ज्यादा निर्णायक हो गई है
नेताओं का सही समीकरण और समन्वय ही सफलता का रास्ता बना.
3. उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि अत्यधिक प्रभावशाली रहती है
स्थानीय जनता ने ऐसे उम्मीदवारों को चुना जिनकी पहुंच और काम दिख रहा था.
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