बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने प्रशांत किशोर (पीके) और उनकी राजनीतिक पार्टी जनसुराज (जेएसपी) को बड़ा झटका दिया है। चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने महीनों तक परिवर्तन यात्रा निकालकर खुद को बिहार की राजनीति में नए विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश की थी और बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन नतीजों ने पूरी तस्वीर बदल दी. पीके के ज्यादातर दावे झूठे साबित हुए.
राज्य स्तर पर वोट तो मिले, लेकिन सीटों पर बेहद कमजोर प्रदर्शन
पहली बार चुनाव लड़ने वाली जेएसपी को राज्य स्तर पर 3.44% वोट शेयर मिले, जो एक नई पार्टी के लिए उल्लेखनीय माना जा सकता है।
लेकिन सीट-दर-सीट विश्लेषण में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद से काफी कमजोर रहा.
जनसुराज पार्टी ने इनमें से 238 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे
जेएसपी को 68 सीटों पर नोटा से भी कम वोट मिले.
यानी लगभग 28.6% सीटों पर मतदाताओं ने जेएसपी की जगह नोटा को चुना.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस नतीजे से पता चलता है कि राज्य स्तर पर पहचान बढ़ने के बावजूद स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ बेहद कमजोर रही.
जहां नोटा ने जेएसपी को पछाड़ दिया – कुछ प्रमुख उदाहरण
| सीट | जेएसपी वोट | नोटा वोट |
|---|---|---|
| अलीनगर | 2275 | 4751 |
| अमरपुर | 4789 | 6017 |
| अररिया | 2434 | 3610 |
| अटारी | 3177 | 3516 |
| औरंगाबाद | 2755 | 3352 |
| कोचाधामन | 1976 | 2039 |
इन आंकड़ों से साफ है कि जेएसपी को कई क्षेत्रों में बुनियादी समर्थन भी नहीं मिल सका.
छोटे दलों की तुलना में जेएसपी की स्थिति
छोटी पार्टियों की तुलना में जनसुराज का प्रदर्शन मिला-जुला रहा.
- AIMIM उम्मीदवार 14.3% सीटों पर NOTA से पीछे रहे।
- वीएसआईपी केवल 8.3% सीटों पर नोटा से पीछे रही।
- आज़ाद समाज पार्टी को लगभग आधी सीटों पर नोटा से भी कम वोट मिले.
- एसयूसीआई, समता पार्टी, बिहारी लोक चेतना पार्टी और एनसीपी (बिहार इकाई) एक भी सीट पर नोटा को हराने में असफल रही।
इन नतीजों से साफ है कि कमजोर प्रदर्शन के बावजूद जेएसपी कई छोटी पार्टियों से बेहतर स्थिति में रही.
जेएसपी वोट शेयर में सातवें स्थान पर रही
राज्य स्तर पर जेएसपी 3.44% वोटों के साथ सातवें स्थान पर रही। इससे अधिक वोट केवल राजद, भाजपा, जदयू, कांग्रेस, लोजपा (आरवी) और निर्दलीयों को मिले।
हालांकि, जानकारों का कहना है कि राज्य स्तर पर वोट प्रतिशत तभी प्रभावी माना जाता है जब पार्टी सीट स्तर पर भी निर्णायक उपस्थिति दर्ज कराती है.
जनमत संग्रह समर्थन का वास्तविक स्तर दिखाते हैं
चुनाव नतीजे बताते हैं कि प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने राज्य स्तर पर भले ही धूम मचा रखी हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर भरोसा हासिल करने में पार्टी अब भी काफी पीछे है.
नोटा से 68 सीटों से पिछड़ने से पता चलता है कि जनसंपर्क और पदयात्रा के बावजूद जेएसपी की लोकप्रियता कई क्षेत्रों में वोटों में तब्दील नहीं हो सकी.
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