रोहन निषाद/न्यूज़ 11 भारत
चाईबासा/डेस्क: झारखंड मुक्ति मोर्चा लगातार सारंडा वन्य जीव अभ्यारण्य के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगा रही है, लेकिन जनता अब साफ समझ चुकी है कि क्षेत्रीय दलों को आदिवासी-मूलवासी समाज की कोई खास चिंता नहीं है. भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है, जो हर मुद्दे पर जनहित को सर्वोपरि रखती है।
पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने कहा कि झामुमो को यह बताना चाहिए कि जब सारंडा को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित करने का प्रस्ताव कैबिनेट में रखा गया था, तो झामुमो-कांग्रेस के एक भी विधायक, सांसद या मंत्री ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? हजारों आदिवासी और मूलवासी इसका खुलकर विरोध कर रहे थे, फिर भी हेमंत सरकार के छह मंत्रियों की टीम अपनी बात रखने में नाकाम रही. अगर सरकार सचमुच सारंडा की जनता के साथ थी तो किस दबाव या परिस्थिति में यह प्रस्ताव कैबिनेट से पारित कराया गया?
भाजपा ने आरोप लगाया कि जब लोगों की स्पष्ट मांग थी कि रिजर्व फॉरेस्ट/सेंचुरी का फैसला रद्द किया जाये, तो झामुमो और कांग्रेस के जन प्रतिनिधि चुप क्यों रहे? यह जनभावना का प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि महज़ एक दिखावा था. आज जब जनता विरोध में खड़ी है तो झामुमो अपने ही फैसलों पर घिरा हुआ है.
भाजपा ने कहा कि झामुमो-कांग्रेस गठबंधन सरकार सारंडा के लोगों को उनका मौलिक अधिकार दिलाने में विफल रही है. चुनाव के दौरान आदिवासियों-मूलवासियों का नाम लेना और सत्ता में आने के बाद उनकी आवाज दबाना झामुमो की राजनीतिक संस्कृति बन गयी है.
उन्होंने इस स्थिति को ‘मीठा-मीठा सुख, कड़वा-कड़वा थू-थू’ बताया।
बीजेपी ने यह भी कहा कि नो-एंट्री की समस्या से लेकर थैलेसीमिया मरीज को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने तक कई मामलों में सरकार का गैर-जिम्मेदाराना रवैया उजागर हुआ है.
सारंडा पर झामुमो का आरोप सिर्फ ध्यान भटकाने की साजिश है.
भाजपा ने मांग की है कि गठबंधन सरकार जनभावनाओं के अनुरूप सारंडा के लोगों को उनके अधिकार की गारंटी दे और सेंचुरी प्रस्ताव पर अपनी वास्तविक स्थिति स्पष्ट करे.
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