आशीष शास्त्री/न्यूज़11भारत
सिमडेगा/डेस्क: लोक आस्था का महापर्व आज सिमडेगा में भारी भीड़ उमड़ी. जिसकी अलौकिक शोभा छठ पूजा के दौरान शंख नदी छठ घाट, केलाघाघ सूर्य मंदिर, प्रिंस चौक शक्ति स्थल सहित पूरे जिले में देखने को मिलती है। आस्थावान लोगों के इस विशाल समूह का कारवां आजादी से पहले 1944 में शुरू हुआ था. जब सिमडेगा में पहली बार शहर के छठ तालाब में छठ पूजा की गयी थी.
अंग्रेजी हुकूमत की बंदिशों के दौरान सिमडेगा में सूर्य महाउपपासना छठ पूजा का बीजारोपण हुआ था. 1944 के अक्टूबर महीने में सिमडेगा के तत्कालीन ज्योतिषी आचार्य रमापति शास्त्री, तत्कालीन उत्पाद निरीक्षक बिरजूलाल प्रसाद और व्यवसायी द्वारिका अग्रवाल ने मिलकर सिमडेगा में सूर्य पूजा की योजना बनाई. इसके बाद तीनों ने अपनी पत्नियों से सिमडेगा में छठ पूजा करायी. 23 अक्टूबर 1944 को कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन शहर के छठ तालाब में तीन महिलाओं सीता देवी, सावित्री देवी और द्वारिका अग्रवाल की पत्नी, जो वर्तमान कपड़ा व्यवसायी शंकरलाल अग्रवाल की मां थीं, की लाशें मिली थीं. इन तीनों ने पहली बार सिमडेगा छठ तालाब में भगवान भुवन भास्कर को अर्घ्य दिया.
उस समय सिमडेगा शहर की जनसंख्या बहुत कम थी. लेकिन उस समय भी छठ पूजा कैसे की जाती है यह देखने की जिज्ञासा से लोग छठ तालाब के पास जमा हो गये थे. जब वह हाथों में फूल लेकर खड़े थे तो कोई दूर से छठ पूजा की रस्मों को ध्यान से देख रहा था. इसके बाद जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो आजाद भारत में इस छठ पूजा का महत्व दिन-ब-दिन बढ़ता गया और आज सिमडेगा में एक बड़ा कारवां बन गया है. जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है
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