झारखंड में राजद को सबसे आगे रखा गया, बिहार में झामुमो को क्या मिला?
अगर राजद को 7 सीटें नहीं दी जातीं तो वह 4 सीटें भी नहीं जीतती और न ही कोई मंत्र होता।
न सिर्फ राजद बल्कि महागठबंधन में शामिल कांग्रेस की चुप्पी भी लोगों को नागवार गुजरी
news11 भारत
रांची/डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव खत्म हो गए हैं और चुनाव नतीजे भी सामने आ गए हैं. बिहार की जनता ने एक बार फिर एनडीए को न सिर्फ जनादेश दिया है, बल्कि भारी बहुमत से जीत दिलाकर उनसे किये गये विकास के वादों को पूरा करने का मौका भी दिया है. खैर, अभी बिहार के नतीजे आ गए हैं और अगली सरकार बनने का काम बाकी है, उसके बाद बिहार के विकास की आगे की कहानी लिखी जाएगी.
फिलहाल विचारणीय प्रश्न बिहार का नहीं बल्कि झारखंड का है. बिहार चुनाव से जुड़ा यह मामला सीधे तौर पर झारखंड की सत्ताधारी सरकार से जुड़ा है. झारखंड की सत्ताधारी सरकार शायद बिहार में हुए अपमान को अब तक नहीं भूली होगी. जिस महागठबंधन ने कभी राजद को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनाया, जिसने न सिर्फ उसे गठबंधन में शामिल कर कई सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया, बल्कि साथ मिलकर चुनाव लड़कर 7 में से 4 सीटें जीतने का मौका दिया, उसी पार्टी से एक मंत्री भी बनाया, जब बिहार में साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मौका आया तो उसी पार्टी ने ‘विश्वासघात’ कर दिया।
हालांकि यह पहले से ही तय था कि राजद के नेतृत्व में बिहार के महागठबंधन में झामुमो को जगह नहीं मिलने वाली है, फिर भी पार्टी प्रमुख ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने और झारखंड में सफलता हासिल करने की इच्छा का हवाला देते हुए पूरी कोशिश की कि उनकी पार्टी को बिहार में भी कुछ सीटें मिलें, लेकिन इसके बाद जिद की रणनीति के तहत चुनाव लड़ने वाले तेजस्वी यादव ने न तो झामुमो की कोई दलील मानी और न ही सीट देना उचित समझा. इससे नाराज झामुमो ने पहले तो बिहार में कुछ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन बाद में अपना फैसला बदल लिया.
इस कहानी का एक पहलू यह भी है कि राजद और तेजस्वी की जिद ने झामुमो को इतना नाराज कर दिया कि उसने यहां तक कह दिया कि आगे की रणनीति बिहार चुनाव खत्म होने के बाद तय की जाएगी. अब बिहार चुनाव ख़त्म हो चुका है. तो क्या झामुमो अपनी ‘बात’ पर कायम रहेगा? क्या हो सकती है जेएमएम की रणनीति?
यहां यह भी बता दें कि झामुमो न सिर्फ राजद बल्कि कांग्रेस से भी पूरी तरह खफा था. अब अगर झामुमो कोई फैसला लेता है तो वह सिर्फ राजद के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी होगा, लेकिन क्या…? चूंकि जेएमएम की ओर से कहा गया था कि फैसला बिहार चुनाव के बाद लिया जाएगा… इसलिए इस फैसले का एक ही मतलब है, खासकर राजद के लिए… कड़े फैसले का एक मतलब सरकार से बाहर का रास्ता दिखाना भी है… अगर बिहार में राजद को सरकार से बाहर कर दिया गया तो सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन फिर कांग्रेस का क्या होगा… क्योंकि कांग्रेस के प्रति भी नाराजगी है…
लेकिन ऐसा नहीं लगता कि झामुमो इतना कठोर फैसला लेने जा रहा है, भले ही चुनाव के बाद राजद ‘कमजोर’ और ‘शक्तिहीन’ हो गया है. लेकिन झारखंड के कुछ इलाकों में इसकी पकड़ अभी भी बरकरार है और यही पकड़ इसे महागठबंधन के रूप में और भी ताकतवर बनाती है. यही हाल महागठबंधन के अन्य दलों का भी है कि राजद की ताकत उनके लिए भी काम करती है. 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में यह साबित भी हो गया है. फिर भी झारखंड की जनता इस मसले पर ‘हमने जो कहा, वो किया’ कहने वाली सरकार के अगले कदम का इंतज़ार कर रही है.
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