धनबाद समाचार: नगर निगम चुनाव की बयार जो भी हो, शहर का राजनीतिक तापमान बढ़ गया है. स्थिति यह है कि इस त्योहारी सीजन में साइलेंट मोड में काम करने वाले स्वयंसेवक और नेता जी एक बार फिर कुर्ता-पायजामा छोड़कर दौड़ में लग गए हैं. पहले दिवाली और अब छठ के नाम पर जनसंपर्क और चाय पर चर्चा का दौर शुरू हो गया है. कुछ लोग खुद तो कुछ अपने खास एजेंटों के जरिए अपना चेहरा सामने रख रहे हैं। इधर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच फूट भी शुरू हो गई है. सभी पार्टियां अपने प्रभावशाली कैडर को परखने में लगी हैं.
पार्टियों के भीतर भी समीकरण बनाने की कोशिश
नगर निगम की राजनीति को लेकर सबसे ज्यादा हलचल बीजेपी में है. पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल जहां रेस में हैं, वहीं सिंह मेंशन और रघुकुल (दोनों परिवार) भी दावेदारी कर सकते हैं. सांसद ढुलू महतो की पत्नी सावित्री देवी के नाम पर भी दावा किया जा रहा है. कांग्रेस में भी कई दावेदार हैं. कांग्रेस नेता शमशेर आलम मैदान में दिखने लगे हैं, वहीं पूर्व मेयर इंदु देवी की बहू आशनी सिंह और बीजेपी नेता सामाजिक कार्यकर्ता एलबी सिंह का नाम भी रेस में है. इसके अलावा बीजेपी नेता सत्येन्द्र कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता शांतनु चंद्रा समेत पक्ष और विपक्ष के लोग अलग-अलग गुटों के समर्थन में माहौल बनाने में जुट गए हैं.
कई लोग पार्षदी के लिए भी मैदान में कूद पड़े.
वार्ड पार्षद पद के लिए जोड़-तोड़ भी शुरू हो गयी है. न केवल सत्ताधारी अपनी छाप छोड़ रहे हैं, बल्कि नए दावेदारों की फौज भी सामने आने लगी है। कई नेता भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं. मोहल्लों में बैनर-पोस्टर भी दिखने लगे हैं.
त्योहार के बाद चहल-पहल बढ़ जाएगी
छठ पर्व के बाद नेताओं की सक्रियता और बढ़ने की उम्मीद है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार निगम चुनाव पूरी तरह से व्यक्तित्व आधारित होगा, जहां चेहरों और स्थानीय मुद्दों का बड़ा असर रहेगा.
बाहर जाने वालों की परेशानी बढ़ गयी
निगम के निवर्तमान अधिकारी लंबे समय बाद चुनाव की संभावना से ज्यादा चिंतित हैं. दरअसल, इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई है कि क्या उन लोगों ने जो किया है उसे अब भी याद रखा जाएगा. ज्यादातर का कहना है कि बेहतर काम करने के बाद भी दोबारा याद दिलाना जरूरी है।
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