सिलिकोसिस एक लाइलाज और धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है
जमशेदपुर समाचार:
जिले में सिलिकोसिस से पीड़ित श्रमिकों के अधिकारों की लड़ाई और उन्हें मुआवजा दिलाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ झारखंड (ओएसएचए इंडिया) के महासचिव समित कुमार कर अब खुद सिलिकोसिस जैसी घातक बीमारी से पीड़ित हो गए हैं।
समित कर ने बताया कि टाटा मेन हॉस्पिटल (टीएमएच) की डिस्चार्ज समरी में उन्हें सिलिकोसिस से पीड़ित बताया गया है. जांच रिपोर्ट के मुताबिक उनके फेफड़े मल्टी डस्ट से भर गए हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बीमारी के बारे में 2021 में एक्स-रे रिपोर्ट के बाद पता चला. यह बीमारी लाइलाज है और धीरे-धीरे बढ़ती है. उन्होंने दुख जताया कि जिले में अब तक सिलिकोसिस बीमारी से सैकड़ों मजदूरों की जान जा चुकी है.
समित कुमार कर ने बताया कि वह 1995-96 में मजदूर यूनियन चलाते थे. 2002 से, उनका संगठन ओएसएचए इंडिया सिलिकोसिस जैसी व्यावसायिक बीमारियों से पीड़ित श्रमिकों की पहचान, अनुसंधान और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर काम कर रहा है। उनके मुताबिक जिले में सिलिकोसिस से अब तक एक हजार से ज्यादा मजदूरों की मौत हो चुकी है.
ओएसएचए इंडिया ने पूर्वी सिंहभूम जिले में 176 मृत श्रमिकों की पहचान की थी, लेकिन अब तक सिर्फ 37 आश्रितों को ही मुआवजा मिल सका है. वहीं, जीवित बचे 385 सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों को आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है. ज्यादातर पीड़ित आदिवासी, मूलवासी, दलित और पिछड़े वर्ग से हैं. समित कुमार कर ने बताया कि 2014, 2018, 2019, 2021, 2023 और 2024 में भी उन्होंने सरकार से एमजीएम अस्पताल में जांच किए गए पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग की थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.
उन्होंने कहा कि कारखाने मजदूरों के लिए जानलेवा बन गये हैं. यहां तक कि रैमिंग मास इंडस्ट्री में केवल आठ महीने तक काम करने वाला श्रमिक भी सिलिकोसिस की चपेट में आ सकता है। उन्होंने इसे ”एक अदृश्य अकाल मृत्यु” बताया.
समित कुमार कर ने बताया कि सिलिकोसिस पर काम करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली. उनके दादा की कोलकाता और ओसाका (जापान) की कार ग्लास वर्क्स फैक्ट्रियों में कई श्रमिकों की सिलिकोसिस के कारण मृत्यु हो गई थी। इसलिए उनके पिता ने उन्हें इस मुद्दे पर जागरूकता और न्याय के लिए लड़ने की सलाह दी.
झारखंड में सिलिकोसिस से मौत की पहली खबर 2002 में आई थी.
समित कुमार कर ने याद करते हुए कहा कि झारखंड में सिलिकोसिस से मौत की पहली खबर साल 2002 में आई थी, जब पूर्वी सिंहभूम जिले के तेरेंगा गांव के बादल सोरेन की 23 नवंबर 2002 को और खरियाडीह के प्रधान हेम्ब्रम की 14 मई 2003 को सिलिकोसिस से मौत हो गई थी. 3 अगस्त 2007 तक 20 और मजदूरों की जान चली गई. उसके बाद लगभग हर साल किसी न किसी मजदूर की इस बीमारी से मौत हुई है.20 अप्रैल 2005 को मुसाबनी प्रखंड के डॉक्टरों की टीम ने सिलिकोसिस से पीड़ित आठ मजदूरों की पहचान की थी. वहीं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर जून 2014 में सरकारी डॉक्टरों ने 30 मृत श्रमिकों, 27 सिलिकोसिस पीड़ितों और 12 संभावित प्रभावित लोगों की पहचान की थी.
समित कुमार कर ने कहा कि वह खुद अब इस बीमारी से लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। जब तक मैं जीवित हूं सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों को न्याय दिलाने का अभियान जारी रखूंगा।
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