IITF 2025: देश की राजधानी नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित 44वें इंटरनेशनल ट्रेड फेयर (IITF) 2025 में इस साल झारखंड पवेलियन चर्चा में है. यहां वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा झारखंड की हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास की दिशा में किये जा रहे उल्लेखनीय प्रयासों को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जा रहा है. मंडप में सिसल (एगेव) आधारित उत्पादों और नवाचारों का प्रदर्शन यहां आने वाले लोगों को राज्य की उभरती संभावनाओं के बारे में बता रहा है।
सिसल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है
झारखंड में सिसल (एगेव) पौधे की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तीव्र और प्रभावी परिवर्तन का माध्यम है। कम पानी और प्रतिकूल मौसम में पनपने वाला यह पौधा प्राकृतिक फाइबर का प्रमुख स्रोत है। इसका उपयोग रस्सियाँ, चटाइयाँ, बैग और अन्य हस्तशिल्प उत्पाद बनाने में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके रस से बायो-एथेनॉल और स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं।
औषधीय एवं कॉस्मेटिक उपयोग से उद्यमिता को नई दिशा
इतना ही नहीं, इसके औषधीय और कॉस्मेटिक उपयोग से स्थानीय उद्यमिता को नई दिशा मिली है। बंजर और कम उपजाऊ भूमि में भी एगेव की खेती में आसानी इसे भूमि संरक्षण, पारिस्थितिक बहाली और जलवायु-अनुकूल खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।
सिसल टिकाऊ आजीविका का साधन बन रहा है
सिसल परियोजना के बारे में एसबीओ अनितेश कुमार ने बताया कि वर्तमान में 450 हेक्टेयर क्षेत्र में सिसल लगाया गया है. विभाग का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में इसे 100 हेक्टेयर और बढ़ाने का है। उन्होंने कहा कि पिछले वित्तीय वर्ष में सिसल का उत्पादन 150 मीट्रिक टन था, जबकि चालू वित्तीय वर्ष के लिए उत्पादन का लक्ष्य 82 मीट्रिक टन निर्धारित किया गया है.
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सिसल पौधे से ग्रामीणों को स्थाई आजीविका मिल रही है।
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग एसआईएस की पहल पर प्रदेश में बड़े पैमाने पर सिसल के पेड़ लगाकर ग्रामीणों के लिए टिकाऊ आजीविका का सृजन किया जा रहा है। विभाग द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 90,000 मानव दिवस का रोजगार सृजन किया जा रहा है, जिससे ग्रामीण परिवार आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। इससे हरित विकास को भी गति मिल रही है।
जूट उत्पाद झारखंड की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करते हैं
मंडप में प्रदर्शित जूट उत्पाद झारखंड की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा का भी प्रदर्शन कर रहे हैं। स्थानीय कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित पर्यावरण-अनुकूल जूट बैग, घरेलू सजावट की वस्तुएं और हस्तनिर्मित उपयोगी वस्तुएं राज्य की शिल्प कौशल, बढ़िया बुनाई तकनीक और ग्रामीण कारीगरी की गहरी जड़ों को प्रदर्शित करती हैं। ये उत्पाद न केवल झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को आगे बढ़ाते हैं, बल्कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कारीगरों के लिए नए अवसर भी प्रदान करते हैं।
आईआईटीएफ 2025 में राष्ट्रीय मंच पर झारखंड का डंका
राज्य के उत्पादों और इसके कारीगरों को राष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित करने के लिए आईआईटीएफ 2025 में झारखंड का स्टॉल आयोजित कर रहा है, ताकि निवेश, बाजार और तकनीकी सहयोग के नए अवसरों को आकर्षित किया जा सके। झारखंड का लक्ष्य सिसल-आधारित उद्योगों को मजबूत करके और जलवायु-संवेदनशील विकास को आगे बढ़ाकर ग्रामीण जीवन को सशक्त बनाना है।
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