लखनऊ. नाबालिग रेप पीड़िता को एक योजना के तहत मुआवजा न देने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने अधिकारियों को पीड़िता को नियमानुसार तीन दिन में तीन लाख रुपये मुआवजा देने और देरी के लिए 15 दिन के भीतर दो लाख रुपये अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया है.
इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी छूट दी है कि वह पीड़िता को मुआवजा राशि में देरी के लिए जिम्मेदार लोगों से नियमानुसार 2 लाख रुपये की वसूली कर सकती है और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी कर सकती है.
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश पीड़िता द्वारा अपने पिता के माध्यम से दायर याचिका पर दिया. याचिका में पीड़िता को वर्ष 2015 के रानी लक्ष्मी बाई महिला सम्मान कोष के नियमों के तहत मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया गया था.
पीड़िता के वकील ने बताया कि इसी साल मई में पीड़िता के साथ हुई रेप की घटना के बाद जून महीने में इसकी चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई थी. इसके बाद नियमानुसार उन्हें एक माह में दो किस्तों में 3 लाख रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए था, जो नहीं मिला. मजबूरी में यह याचिका सितंबर में दाखिल करनी पड़ी.
वहीं, सरकारी वकील ने कहा कि मुआवजे के भुगतान के लिए अधिकारियों ने पीड़िता से उसका खाता नंबर मांगा, जो 16 अक्टूबर को दिया गया. इस पर कोर्ट ने कहा कि आज तक पीड़िता को एक भी पैसा नहीं मिला है. पुलिस और कानून अधिकारियों की दयनीय स्थिति समझ से परे है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे जघन्य अपराध के पीड़ित की पीड़ा को कम करने के लिए मुआवजे का भुगतान बहुत जल्दी या तुरंत किया जाना चाहिए। ऐसे में पीड़िता को मुआवजे के लिए याचिका दायर करनी पड़ी, जिसके लिए वह मुआवजा पाने की हकदार भी है.
कोर्ट ने कहा कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की जाए और उनकी जवाबदेही तय की जाए और उन पर मुआवजा लगाया जाए. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पीड़िता को देरी के लिए 2 लाख रुपये के साथ-साथ 3 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश देकर याचिका मंजूर कर ली।



