प्रयागराज, लोकजनता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरीज (एफएसएल) द्वारा जांच एजेंसियों को विसरा रिपोर्ट भेजने में हो रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह तथ्य परेशान करने वाला है। फोरेंसिक प्रयोगशालाओं को जांच एजेंसियों को विसरा रिपोर्ट की शीघ्र डिलीवरी सुनिश्चित करनी चाहिए।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल की एकल पीठ ने राम रतन की जमानत याचिका को खारिज करते हुए पारित किया, साथ ही मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक को वर्तमान स्थिति पर विचार करने और जांच अधिकारियों को अविलंब विसरा रिपोर्ट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, ताकि जांच पूर्ण, निष्पक्ष और प्रभावी हो सके. मामले पर विचार करते हुए, अदालत ने पाया कि वर्तमान मामले में, मृतक का विसरा फरवरी 2024 में प्रयोगशाला में भेजा गया था, रिपोर्ट सितंबर 2024 में तैयार की गई थी, लेकिन जांच अधिकारी को 1 फरवरी, 2025 तक नहीं मिली। इस बीच, 13 सितंबर 2024 को आरोप पत्र दायर किया गया और 11 नवंबर को संज्ञान भी लिया गया।
कोर्ट का मानना है कि विसरा रिपोर्ट के बिना जांच अधूरी है और रिपोर्ट के बिना मृतक की मौत के कारणों की निर्णायक जांच नहीं की जा सकती. अदालत ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को एक सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारियों को आदेश की एक प्रति भेजने का निर्देश दिया। मामले के मुताबिक, फर्रुखाबाद के थाना मोहम्मदाबाद में आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मृतिका के भाई ने एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी बहन को उसके पति और ससुराल वालों ने एक मोटरसाइकिल और एक लाख रुपये दहेज की मांग के लिए प्रताड़ित किया था और संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मौत हो गई. राज्य ने आरोपी की जमानत का विरोध किया. कोर्ट ने कहा कि चूंकि शादी के सात साल के भीतर महिला की मौत अप्राकृतिक है और पति पर दहेज उत्पीड़न का आरोप है, इसलिए उसका मामला ससुराल वालों से अलग है. जिसके चलते कोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी.



