लखनऊ, अमृत विचार। संसाधनों की कमी, सीमित जनशक्ति और काम के असमान वितरण के कारण उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में दवा नियंत्रण प्रणाली लंबे समय से कमजोर रही है। जनसंख्या और बाजार के अनुपात में राज्य औषधि नियंत्रण प्रणाली राष्ट्रीय मानकों से काफी पीछे है। नकली, एक्सपायर्ड या अवैध दवाओं की जांच के लिए पर्याप्त सैंपलिंग नहीं की जा रही है। नतीजतन, दवा सुरक्षा निगरानी प्रणाली केवल कागजों पर ही रह गई है।
केंद्र सरकार के मानकों के मुताबिक हर 200 दवा प्रतिष्ठानों पर एक ड्रग इंस्पेक्टर तैनात होना चाहिए, जबकि उत्तर प्रदेश में औसतन एक इंस्पेक्टर 2 हजार से ज्यादा प्रतिष्ठानों पर निगरानी रख रहा है. फिलहाल राज्य में मात्र 109 ड्रग इंस्पेक्टर कार्यरत हैं, जबकि जरूरत कम से कम 250 से 300 इंस्पेक्टरों की है. कई जिलों में निरीक्षकों की कमी के कारण निरीक्षण कार्य ठप है या बहुत ही सीमित स्तर पर चल रहा है.
एफएसडीए के पास प्रयोगशालाएं हैं, लेकिन उनका आधुनिकीकरण अधूरा है। राज्य प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिला स्तर पर नियंत्रण पदाधिकारी की कमी के कारण न तो दवा दुकानों का नियमित निरीक्षण हो पा रहा है और न ही शिकायतों पर समय पर कार्रवाई हो पा रही है. यही कारण है कि ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में खुलेआम नकली या बिना लाइसेंस वाली दवाएं बेची जा रही हैं।
विभाग के पुनर्गठन को लेकर सरकार की सक्रियता बढ़ी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब इस स्थिति में सुधार के लिए औषधि नियंत्रण प्रणाली के पुनर्गठन की दिशा में ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। इसे लेकर विभाग में जिला स्तर पर ‘जिला औषधि नियंत्रण अधिकारी’ का नया पद सृजित करने सहित औषधि निरीक्षकों की संख्या दोगुनी करने के लिए भर्ती प्रस्ताव तैयार करने का काम चल रहा है.
नई भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए अब साक्षात्कार के बजाय लिखित परीक्षा के माध्यम से चयन किया जाएगा। ड्रग कंट्रोलर के पद के लिए कुछ योग्यताएं और कार्यकाल तय करने की नीति बनाई जा रही है, ताकि शीर्ष स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके. मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट निर्देश दिया है कि औषधि निरीक्षण व्यवस्था को राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना जन स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।



