कार्यालय संवाददाता, बाराबंकी, लोकजनता: सड़क दुर्घटना में आठ निर्दोष लोगों की जान जाने की घटना लोक निर्माण विभाग, यातायात एवं सड़क सुरक्षा समिति की औपचारिक बैठकों के मुंह पर तमाचा है। हर बड़े हादसे के बाद ये सभी अपनी गर्दन बचाते हुए एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपते हुए विभागीय रस्म अदायगी करते नजर आते हैं। अपनी गर्दन बचाने के लिए इस घटना की रिपोर्ट सरकार को भी भेजी जाएगी, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार लोगों के साथ जो कुछ किया जा सकता था, किया गया, इसका जवाब है नहीं. साफ है कि हर कोई फिर से किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है.
सबसे पहले घटना स्थल पर नजर डालें तो देवा और फतेहपुर क्षेत्र की सीमा को जोड़ने वाली कल्याणी नदी पर बना पुल हादसे का कारण बना है। यह पुल 30 किलोमीटर की दूरी में न सिर्फ संकरा है बल्कि दोनों रास्तों के बीच सिकुड़ भी गया है. पुल के दोनों ओर वाहनों को झटका देने वाले पैच लगाए गए हैं, जिससे दुर्घटना की आशंका लगातार बनी रहती है। अब अगर जिम्मेदारों की जवाबदेही की बात करें तो लंबे रूट के महत्वपूर्ण पड़ाव इस पुल पर संकेतक, रिफ्लेक्टर, रोड ब्लॉक, प्रकाश व्यवस्था तो छोड़िए, गति सीमा का बोर्ड तक नहीं लगा है। जिससे वाहन चालक सतर्क होकर नियंत्रण कर सकें।
पुल पर पहुंचने के बाद सड़क चौड़ी और संकरी होने पर वाहन चालक अचानक गाड़ी मोड़ लेते हैं, ऐसे में दूसरी ओर से आ रहे वाहन काफी करीब से गुजरते हैं। जिससे दुर्घटना की आशंका प्रबल हो जाती है। घटना को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं लेकिन जिस हादसे ने आठ लोगों की जान ले ली वो बहुत बड़ा और बेहद परेशान करने वाला था. सड़क सुरक्षा समिति की बैठक हर माह होती है, लेकिन यह रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं है. अन्य दिशा-निर्देशों की बात कौन करे, सड़क पर बड़े वाहनों की पार्किंग की दिशा में अब तक कोई सार्थक पहल नहीं की गयी है और न ही कोई ब्लैक स्पॉट तय किये गये हैं. सरकार भले ही हादसों में जानमाल के नुकसान को लेकर चिंतित हो, लेकिन बाराबंकी के जिम्मेदारों को इसकी परवाह नहीं है। अब शायद उन्हें भी इससे बड़े हादसे का इंतजार है.



