नीरज मिश्र, लखनऊ, लोकजनता: सड़क सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के हादसों और उनसे होने वाली मौतों में कमी के दावे इस साल की तीसरी तिमाही में भी सच होते नहीं दिख रहे हैं। तिमाही और छमाही के बाद पिछले नौ महीनों का तुलनात्मक डेटा काफी चौंकाने वाला है। साल 2025 के जनवरी से सितंबर के बीच राज्य के 75 जिलों में 37,382 सड़क दुर्घटनाएं हुईं. इनमें से 20,116 लोगों की असामयिक मृत्यु हो गई। गंभीर रूप से घायल लोगों की संख्या 28,469 थी. जो पिछले साल 2024 के मुकाबले काफी ज्यादा है. इन आंकड़ों की बढ़ती संख्या को देखकर कहा जा सकता है कि ड्राइवर को खुद ही इस दिशा में गंभीर होना होगा. अर्थात पहले जीवन का अध्ययन करें फिर वाहन पर बैठें तो दुर्घटनाएं कम हो सकती हैं।
तुलनात्मक डेटा (जनवरी से सितंबर) – 2024-2025 – प्रतिशत में वृद्धि
सड़क दुर्घटनाएं- 32,852 -37,382 – 13.8
मृतकों की संख्या-17,123 -20,116 – 17.5
घायलों की संख्या- 24,761 -28,469 – 15.0
2015 से चल रहे प्रयास, नतीजा शून्य
सड़क सुरक्षा विंग की स्थापना वर्ष 2015 में हुई थी। इनमें यातायात, पुलिस, स्वास्थ्य, शिक्षा, लोक निर्माण, एनएचआई समेत कई विभागों को शामिल कर सामूहिक प्रयास करने के निर्देश दिए गए थे। जागरूकता कार्यक्रमों से लेकर कार्रवाई तक इन एजेंसियों के सामूहिक प्रयास 11 साल बाद भी जमीन पर कोई ठोस छाप नहीं छोड़ पाए हैं।
“4-ई अवधारणा” लागू की गई
“4-ई संकल्पना” लागू की गई। इसकी मंशा है कि सड़क इंजीनियरिंग, शिक्षा, आपातकालीन देखभाल और प्रवर्तन को संयुक्त रूप से जमीन पर लागू किया जाए, लेकिन अब तक प्राप्त परिणाम शून्य ही देखे गए हैं। हर साल असमय मौत का शिकार होने वाले लोगों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।



