कानपुर, अमृत विचार। पेट में जलन, भारीपन, गैस, उल्टी, मतली, निगलने में कठिनाई या अपच जैसे लक्षणों के साथ ऊपरी जठरांत्र संबंधी असुविधा आज लोगों में आम होती जा रही है। अक्सर लोग इन लक्षणों को सिर्फ सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि असल में ये शरीर के विभिन्न पाचन तंत्रों में असंतुलन या किसी गहरी गड़बड़ी का संकेत हो सकते हैं। यह जानकारी वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एसी अग्रवाल ने आईएमए में दी और बचाव के बारे में बताया।
परेड स्थित आईएमए सभागार में रविवार को आईएमए फिजिशियन लर्निंग एकेडमी के तहत बैक टू बैक एकेडमिक्स श्रृंखला में एक शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। शैक्षिक सत्र का उद्देश्य डॉक्टरों को गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से संबंधित नई जानकारी और प्राथमिक चिकित्सा में ऊपरी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल असुविधा के प्रबंधन के बारे में शिक्षित करना था।
डॉ. एसी अग्रवाल ने बताया कि लक्षणों और प्रणालियों को जोड़ने का मूल अर्थ सिर्फ लक्षणों को नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे कारणों और प्रणालियों को समझना है। जब डॉक्टर मरीज द्वारा बताए गए लक्षणों को उसके शरीर की कार्यप्रणाली, खान-पान, जीवनशैली और मानसिक स्थिति से जोड़ते हैं तभी सही निदान और इलाज संभव हो पाता है। इस दृष्टिकोण ने ऊपरी जठरांत्र संबंधी असुविधाओं के प्रबंधन में समग्र दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया।
इसमें आवश्यकतानुसार उचित परीक्षण और दवाओं का चयन शामिल है। रोगी को स्वस्थ जीवनशैली, नियमित खान-पान, तनाव नियंत्रण और नींद के महत्व के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए। जब डॉक्टर लक्षण और प्रणाली को पाटते हैं, तो वे न केवल तत्काल राहत प्रदान करते हैं, बल्कि बीमारी की जड़ तक पहुंच सकते हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधार सुनिश्चित कर सकते हैं। इस दौरान आईएमए अध्यक्ष डॉ. अनुराग मेहरोत्रा, सचिव डॉ. शालिनी मोहन, वैज्ञानिक सचिव डॉ. दीपक श्रीवास्तव, कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ. मयंक मेहरोत्रा, डॉ. पुनीत पुरी, पूर्व सचिव डॉ. विकास मिश्रा समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।
बढ़ती उम्र के साथ पाचन तंत्र प्रभावित होता है
गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. शुभ्रा मिश्रा ने बताया कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बढ़ती उम्र के साथ शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों का असर हमारे पाचन तंत्र यानी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम पर भी पड़ता है. ये परिवर्तन बुजुर्गों में पाचन रोगों के निदान और उपचार दोनों को अधिक चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। बढ़ती उम्र के साथ लार का स्राव कम होने से खाना निगलने में दिक्कत होने लगती है। पेट में एसिड का स्राव कम होने से भोजन पचाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। आंतों की गतिशीलता कम होने के कारण कब्ज होता है। लीवर और अग्न्याशय की सक्रियता कम होने से दवाओं का असर और पाचन दोनों प्रभावित होते हैं।
शारीरिक बदलावों के कारण बुजुर्गों में बढ़ रही समस्याएं
डॉ. शुभ्रा मिश्रा के मुताबिक, शारीरिक बदलावों के कारण बुजुर्गों में गैस, अपच, कब्ज और पोषण की कमी जैसी समस्याएं अधिक देखी जा रही हैं। कई बार पेट की गंभीर बीमारियाँ जैसे अल्सर या रक्तस्राव बिना दर्द के केवल कमजोरी या एनीमिया के रूप में प्रकट होती हैं, जिसके निदान में देरी से प्रभावित व्यक्ति के लिए गंभीर समस्याएँ हो सकती हैं। इसलिए बुजुर्गों को नियमित स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए। संतुलित आहार, पर्याप्त पानी और हल्का व्यायाम अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।



