धीरेंद्र सिंह, लखनऊ, लोकजनता: लखीमपुर खीरी के मुस्तफाबाद में ‘स्मृति प्रकटोत्सव मेला’ के मंच से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नए नाम कबीरधाम की घोषणा महज एक प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि इसे योगी सरकार की सांस्कृतिक और वैचारिक राजनीति का विस्तार माना जा रहा है. योगी सरकार के सात वर्षों में इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या, मुगलसराय को पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर और अकबरपुर बस अड्डे को ‘श्रवण धाम’ जैसे नाम दिए गए।
मुख्यमंत्री योगी बार-बार कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में विरासत को मिटाने का युग खत्म हो गया है। सरकार का कहना है कि आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक गौरव को बहाल करने के लिए ये कदम उठाए गए हैं. हर नया नाम बीजेपी की ‘हिंदू पहचान’ की कहानी को और मजबूत करता है. अब प्रदेश की राजनीति में नाम बदलना सिर्फ इतिहास का सुधार नहीं बल्कि एक विचारधारा की स्थापना है. हर नया नाम चुनावी बयान की तरह गूंजता है. जहां आस्था, अस्मिता और शक्ति, तीनों का समीकरण एक साथ चलता है।
वहीं, विपक्ष इसे ध्यान भटकाने की राजनीति बता रहा है. सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि जब जनता बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याओं से जूझ रही है तो सरकार नाम बदलने में लगी है.
पांच इंजीनियरिंग कॉलेजों के नाम भी बदले गए
इस साल जून में पांच सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के नाम भी बदले गए. प्रतापगढ़ के बाबा साहेब अम्बेडकर, मिर्ज़ापुर के सम्राट अशोक, बस्ती के सरदार पटेल, गोंडा की माँ पाटेश्वरी देवी और मैनपुरी के लोकमाता देवी अहिल्या बाई होल्कर इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम रखा गया। यह बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा है, जिसमें दलित, पिछड़े और ऊंची जाति के प्रतीकों को एक साथ साधने की कोशिश की जा रही है.
इन जिलों में नाम बदलने की चर्चा
योगी सरकार में कई अन्य नामों पर भी चर्चा चल रही है. अलीगढ़ का नाम हरिगढ़, मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर, फिरोजाबाद का नाम चंद्रनगर और गाजीपुर के मुहम्मदाबाद का नाम गजाधर नगर करने का प्रस्ताव है। शाहजहाँपुर की जलालाबाद तहसील का नाम पहले ही बदलकर परशुरामपुरी कर दिया गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नामकरण अब उत्तर प्रदेश में चुनावी निवेश बन गया है. हर नया नाम किसी ऐतिहासिक या धार्मिक प्रतीक से जुड़ा होता है और एक भावनात्मक संदेश देता है, जो वोटों में तब्दील हो सकता है।
मायावती ने कई जिलों के नाम भी बदले
नामकरण की राजनीति कोई नई बात नहीं है. मायावती के कार्यकाल में कई जिलों के नाम बदले गए, अमेठी को छत्रपति शाहूजी महाराज नगर, हाथरस को महामाया नगर, शामली को प्रबुद्ध नगर, हापुड को पंचशील नगर और कानपुर देहात को रमाबाई नगर बनाया गया. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ का नाम छत्रपति शाहूजी महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी रखा गया।
अखिलेश यादव भी पीछे नहीं रहे
2012 में जब अखिलेश यादव की सपा सरकार सत्ता में आई तो मायावती द्वारा रखे गए कुछ नाम फिर से बदल दिए गए. उनका तर्क था कि बसपा सरकार ने नाम बदलने में वर्गीय पक्षपात दिखाया है। हालांकि, अखिलेश ने खुद अपनी राजनीति के हिसाब से कुछ नाम बदले। यानी हर सरकार ने अपने वैचारिक या सामाजिक एजेंडे के हिसाब से नामों की राजनीति की है.
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