लखनऊ/पीजीआई, लोकजनता: संजय गांधी पीजीआई संस्थान अब फैटी लीवर और मोटापे से पीड़ित मरीजों के लिए नई उम्मीद बनने जा रहा है। संस्थान के हेपेटोलॉजी विभाग में जल्द ही फैटी लीवर और ओबेसिटी क्लिनिक शुरू किया जाएगा। विभागाध्यक्ष प्रो. अमित गोयल ने संस्थान में आयोजित दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस करंट पर्सपेक्टिव्स इन लिवर डिजीज (सीपीएलडी-2025) में यह घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह क्लिनिक नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) और मोटापे से पीड़ित मरीजों को वन-स्टॉप परीक्षण, परामर्श और उपचार प्रदान करेगा।
सम्मेलन में देश भर के प्रमुख हेपेटोलॉजी और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विशेषज्ञों ने भाग लिया। इनमें पीजीआई के निदेशक प्रो. आरके धीमान, गैस्ट्रो विभाग के प्रमुख प्रो. राकेश अग्रवाल, आईएलबीएस दिल्ली के प्रो. -अनूप सराया, पीजीआई चंडीगढ़ के प्रोफेसर। अजय दुसेजा और KIMS भुवनेश्वर के प्रो. एसी आनंद मौजूद रहे। विशेषज्ञों ने उत्तर प्रदेश में एनएएफएलडी के तेजी से बढ़ते मामलों को चिंता का विषय बताया। एनएचएम की एनएएफएलडी प्रभारी डॉ. अलका शर्मा ने बताया कि प्रदेश में बीमारी की रोकथाम के लिए सर्वेक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम तेजी से चल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में लगभग 38 प्रतिशत वयस्क आबादी फैटी लीवर से प्रभावित है। यह बीमारी ज्यादातर गलत खान-पान, मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता के कारण बढ़ रही है।
फैटी लीवर एक मूक रोग है
फैटी लीवर को एक मूक रोग कहा जाता है क्योंकि शुरुआती दौर में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए तो यह फाइब्रोसिस और सिरोसिस में बदल सकता है, जिससे लिवर फेलियर या कैंसर हो सकता है। सम्मेलन में लगभग 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विशेषज्ञों ने कहा कि स्वस्थ जीवनशैली, संतुलित आहार और नियमित व्यायाम इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे प्रभावी ढाल हैं। पीजीआई की इस पहल को राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।



