वैशाली (बिहार). वैशाली, जहां कभी गणतंत्र की पहली ‘सांस’ ली गई थी, आज राजनीतिक वंशवाद की बेल की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बन गई है। यह विडम्बना है कि लोकतंत्र का सबसे बड़ा विरोधाभास अब यहीं पनप रहा है। एक ऐसा लोकतंत्र जो नाम और वंश का मोहताज हो गया है. यहां की विधानसभा सीटों पर खड़े ज्यादातर उम्मीदवार किसी न किसी नेता के रिश्तेदार हैं. यही वजह है कि सबकी नजरें वैशाली जिले की आठ सीटों पर टिकी हैं.


 
                                    


