बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं, लेकिन इस बार तस्वीर और जटिल हो गई है. पटना की सड़कों पर लोगों को ‘कौन किसके साथ जाएगा?’ जैसे नारे कम और सवाल ज्यादा सुनाई दे रहे हैं. दरअसल, कभी ‘सुशासन बाबू’ कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब ‘यू-टर्न’ पॉलिटिक्स के प्रतीक बन गए हैं. महागठबंधन और एनडीए के बीच लगातार हो रहे बयानबाजी ने जनता को भ्रमित कर दिया है. छठ पर्व के माहौल में जनता से बातचीत में यह बात सामने आयी कि गठबंधन बदलने के शोर में शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन जैसे असली मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं. वहीं, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की मौजूदगी किसी भी बड़े गठबंधन के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है.



