नीतीश कुमार का नेतृत्व एनडीए की जीत का मूल आधार साबित हुआ. उनके 20 साल के शासनकाल को बिहार में विकास, स्थिरता और सुशासन का स्वर्णिम काल माना जाता है। इस अवधि में सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में अभूतपूर्व प्रगति देखी गई। तथाकथित ‘जंगलराज’ से मुक्ति दिलाकर कानून-व्यवस्था सुदृढ़ की, हर घर तक बिजली पहुंचाई और नल से जल की सुविधा उपलब्ध करायी। सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को मध्याह्न भोजन के अलावा साइकिल, पोशाक, छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन राशि उपलब्ध करायी गयी. पंचायतों से लेकर सरकारी नौकरियों तक महिलाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया गया। रोजगार सृजन के लिए एक करोड़ सरकारी नौकरियों का वादा किया गया, जबकि बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों की पेंशन बढ़ा दी गई। प्रति माह 125 यूनिट मुफ्त बिजली के प्रावधान ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दी। गौरतलब है कि चुनाव से ठीक पहले करीब 1.25 करोड़ जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार रुपये जमा किए गए थे, जिसके तहत वे कारोबार शुरू कर सकेंगी और 2 लाख रुपये तक का लोन और ले सकेंगी. यह एक ‘मास्टर स्ट्रोक’ साबित हुआ क्योंकि इसने न केवल स्वयं दीदियों को वोट देने के लिए सक्रिय किया, बल्कि समाज की अन्य महिलाओं को भी एनडीए के पक्ष में प्रेरित किया. महिलाओं का मतदान 71.6% था, जो पुरुषों के 62.8% से 8.8 प्रतिशत अंक अधिक था, और यह अंतर निर्णायक साबित हुआ।



