बीजेपी: बिहार में चुनाव की औपचारिक घोषणा से 6 महीने पहले ही बीजेपी ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी थीं. पार्टी ने विभिन्न स्तरों पर सीटों पर सर्वे कराया और हर क्षेत्र में जातीय समीकरण साधने की रणनीति बनाने का काम शुरू किया. पार्टी ने एनडीए की जीत के लिए कई स्तर पर रणनीति बनाई और उसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी नेताओं को सौंपी. जीत के लिए पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग, जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को संगठित करने, सटीक गठबंधन प्रबंधन और राज्य के लोगों को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का इस्तेमाल किया।
गठबंधन के तहत बीजेपी ने यह सुनिश्चित किया कि भले ही सीट सहयोगी पार्टी के खाते में हो, लेकिन उस सीट पर उम्मीदवार विशिष्ट समुदाय से ही होना चाहिए. इसी रणनीति के तहत एनडीए में उम्मीदवारों का चयन किया गया और सीट बंटवारे में हर सहयोगी दल की मांगों को ध्यान में रखा गया. सीट बंटवारे के बाद नेताओं की नाराजगी दूर करने के लिए पार्टी की ओर से खास रणनीति अपनाई गई.
पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के अकेले लड़ने से एनडीए को हुए नुकसान को देखते हुए पासवान की सीटों की मांग मान ली गई थी. बीजेपी का मानना था कि चिराग पासवान को पासवान समुदाय का समर्थन प्राप्त है और यह समर्थन चुनाव में एनडीए को फायदा पहुंचाने का काम करेगा.
एनडीए कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग बढ़ाने पर जोर
एनडीए के सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बढ़ाने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया. बीजेपी ने हर विधानसभा क्षेत्र में दूसरे राज्यों से आए नेताओं को लगातार प्रचार के लिए तैनात किया और मोदी-नीतीश की जोड़ी को काम करने वाले नेता के तौर पर पेश किया. भाजपा शासित अन्य राज्यों में डबल इंजन सरकार के तहत हो रहे विकास को प्रचारित-प्रसारित किया।
पिछले चुनाव में शाहाबाद और मगध क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया था. कुशवाह और राजपूत वोटरों को लुभाने के लिए उपेन्द्र कुशवाह और पवन सिंह के बीच दूरियां पाटने का काम किया गया. बीजेपी ने बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास को प्राथमिकता देने के साथ-साथ ग्रामीण मतदाताओं तक पहुंचने के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने पर जोर दिया. इसके तहत महिलाओं को 10,000 रुपये दिए गए और बुजुर्गों की पेंशन राशि बढ़ाने के साथ-साथ 125 यूनिट मुफ्त बिजली देकर तत्काल राहत दी गई।
इस योजना के प्रति लोगों का भरोसा जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के खाते में पैसे डालने का काम किया. प्रशांत किशोर के प्रभाव को कम करने के लिए एनडीए ने उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया न देने की रणनीति अपनाई. एनडीए की ओर से व्यवस्थित चुनाव अभियान चलाया गया. जहां भी नेताओं की जरूरत महसूस हुई, उन्हें उन सीटों पर जरूर भेजा गया. यह ऐतिहासिक जीत एक सटीक रणनीति का परिणाम है.



