पटना. लोक आस्था का महापर्व छठ मनाने की परंपरा रामायण और महाभारत काल से ही चली आ रही है। छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। इसमें सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस उत्सव के आयोजन का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इस दिन नदी, तालाब या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इसके महत्व को पूरे देश में स्वीकार कर लिया गया है। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत पड़ा. छठ साल में दो बार मनाया जाता है.
पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिक छठ कहा जाता है। छठ पूजा के लिए चार दिन नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, संध्या अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य महत्वपूर्ण हैं। छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का उपयोग किया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार छठी मैया को भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है। इस त्योहार के दौरान छठी मैया के अलावा भगवान सूर्य की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की पूजा करता है उसकी संतानों की रक्षा छठी मैया करती हैं। कहा जाता है कि चार दिनों का यह कठिन व्रत केवल ईश्वर की शक्ति से ही पूरा हो पाता है। छठ को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राज्य वापस मिल गया। इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है।
कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। मान्यताओं के अनुसार वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना।
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