30.4 C
Aligarh
Sunday, October 26, 2025
30.4 C
Aligarh

छठ खरना 2025: छठ के दूसरे दिन खरना की परंपरा…मां सीता ने की थी पहली पूजा, जानें इसका महत्व

पटना. बिहार में लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन खरना करने की परंपरा है. बिहार में लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन आज राजधानी पटना सहित राज्य के विभिन्न इलाकों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र नदी गंगा और अन्य नदियों एवं तालाबों में स्नान किया. आज सुबह गंगा नदी में स्नान करने के बाद व्रती और उनके परिवार के सदस्य गंगा जल लेकर अपने घर लौट आये और पूजा की तैयारी में लग गये.

आज व्रत का दूसरा दिन है. इस दिन खरना व्रत की परंपरा है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि है। छठ में खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है. यह शुद्धिकरण केवल शरीर का ही नहीं बल्कि मन का भी होता है, इसलिए खरना के दिन व्रती केवल रात में भोजन करके छठ के लिए अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। खरना के बाद श्रद्धालु 36 घंटे का व्रत रखते हैं और सप्तमी को सुबह अर्घ्य देते हैं.

ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन अगर किसी तरह का शोर हो तो व्रती अपना खाना वहीं छोड़ देते हैं. इसलिए इस दिन लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि जब भक्त प्रसाद ग्रहण कर रहे हों तो आसपास कोई शोर न हो। खरना के मौके पर श्रद्धालु आज शाम पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ भगवान भास्कर की पूजा करेंगे. भगवान भास्कर को गुड़ से बनी खीर और घी से बनी रोटी का भोग लगाने से वे स्वयं ग्रहण करेंगे.

इसके बाद भाइयों, मित्रों और परिचितों के बीच खरना का प्रसाद वितरित किया जायेगा. इसके बाद उनका करीब 36 घंटे का उपवास और निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा. खरना के दिन गुड़ और साठी चावल का उपयोग करके शुद्ध तरीके से खीर बनाई जाती है. खरना की पूजा में खीर के अलावा मूली और केला भी रखा जाता है. इसके अलावा भगवान को पूड़ी, गुड़ की पूड़ी और मिठाई का भी भोग लगाया जाता है.

व्रती इस प्रसाद को छठ मैया को अर्पित करने के बाद ही ग्रहण करता है। खरना के दिन व्रती का आहार यही होता है. खरना के दिन बनने वाला खीर का प्रसाद हमेशा नये चूल्हे पर बनाया जाता है. साथ ही इस चूल्हे की एक खास बात ये भी है कि ये मिट्टी से बना है. प्रसाद बनाते समय चूल्हे में जिस लकड़ी का उपयोग किया जाता है वह आम की लकड़ी ही होती है।

पर्व के तीसरे दिन व्रतधारी नदियों और तालाबों में खड़े होकर डूबते सूर्य को फल और कंदमूल से पहला अर्घ्य देते हैं। पर्व के चौथे और आखिरी दिन व्रतधारी फिर से नदियों और तालाबों में उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देते हैं। दूसरा अर्घ्य देने के बाद ही भक्तों का 36 घंटे का उपवास समाप्त होता है और वे अन्न और जल ग्रहण करते हैं। छठ को लेकर राजधानी पटना समेत पूरा बिहार भक्ति के रंग में सराबोर है. राज्य के सभी जिलों में साफ-सफाई से लेकर सुरक्षा और अन्य तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

पटना नगर निगम शहर के पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर बने तालाबों में गंगाजल डाल रहा है. अस्थाई और स्थाई दोनों तालाबों में गंगा जल निःशुल्क डाला जा रहा है। छठ घाट पर चिकित्सा की पुख्ता व्यवस्था रहेगी. आपातकालीन स्थिति में एम्बुलेंस की मदद ली जा सकती है। आज सुबह से ही राज्य के सभी जिलों के बड़े बाजारों में चहल-पहल बढ़ गयी है.

व्रत के दूसरे दिन लोग सुबह से ही दूध और अन्य सामान खरीदने के लिए बाजारों में जाने लगे. लोग दूध के साथ-साथ चूल्हा, आटा, गुड़ समेत अन्य सामानों की खरीदारी में जुटे हैं. महापर्व छठ को लेकर राजधानी पटना समेत पूरे बिहार के घर-घर में छठ गीत गूंजने लगे हैं. ..केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेडराय, आदित लिहो मोर अरगिया.., दरस देखाव ए दीनानाथ.., उगी है सुरूजदेव.., हे छठी मइया तोहर महिमा अपार.., कांच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाए.., जैसे गाने सुने जा रहे हैं।

मां सीता ने अपना पहला छठ मुंगेर में किया था.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सबसे पहले पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर की थी, जिसके बाद से इस महापर्व की शुरुआत हुई. छठ बिहार का महान त्योहार माना जाता है. यह त्योहार बिहार के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का विशेष महत्व है. छठ पर्व से जुड़ी कई परंपराएं हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सबसे पहले पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर की थी। इसके बाद महापर्व शुरू हुआ।

इसके सबूत के तौर पर माता सीता के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। वाल्मिकी रामायण के अनुसार, माता सीता एक बार ऐतिहासिक शहर मुंगेर के सीता चरण में छह दिनों तक रहीं और छठ पूजा की। जब श्री राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण को मारने के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया था लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम और सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि के आदेश पर भगवान राम और सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया।

मुग्दल ऋषि ने माता सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्य देव की पूजा करने का आदेश दिया। यहीं रहकर माता सीता ने छह दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की थी। ऐसा माना जाता है कि जहां माता सीता ने छठ पूजा की थी, वहां उनके पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। बाद में जाफर नगर दियारा इलाके के लोगों ने वहां एक मंदिर बनवा दिया. यह सीताचरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर हर साल गंगा की बाढ़ में डूब जाता है।

सीता के पदचिह्न वाला पत्थर महीनों तक गंगा के पानी में डूबा रहता है। इसके बावजूद उनके पदचिह्न धूमिल नहीं हुए हैं। इस मंदिर और माता सीता के पदचिन्हों के प्रति भक्तों की गहरी आस्था है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां पूरे साल दूसरे राज्यों से भी लोग दर्शन करने आते हैं। यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार, सीताचरण मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है।

नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ महापर्व… छठी मैया के इन गीतों के बिना अधूरा है त्योहार, श्रद्धालुओं ने सूर्य देव को पहला अर्घ देकर किया नमन

FOLLOW US

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
spot_img

Related Stories

आपका शहर
Youtube
Home
News Reel
App