Digboi Refinery: क्या आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि हाथी कच्चे तेल का अकूत भंडार खोज सकता है? इस सवाल को आप एक मजाक भी समझ सकते हैं, लेकिन यह हकीकत है. असम के डिगबोई में जिस स्थान पर आप एशिया की सबसे पुरानी रिफाइनरी देख रहे हैं, कभी उस जगह पर तेल के अकूत भंडार की खोज हाथियों ने की थी या फिर आप कह सकते हैं कि हाथियों के जरिए तेल के अकूत भंडार की खोज हुई थी. आइए, इसके बारे में रोचक कहानी के बारे में जानते हैं.
हाथी से कैसे हुई तेल की खोज
संसद टीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1889 में असम रेलवे एंड ट्रेडिंग कंपनी के इंजीनियर डिब्रूगढ़ से मार्गेरेटा तक रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे. रेलवे लाइन बिछाने के काम में हाथियों का इस्तेमाल किया जा रहा था. इस दौरान कंपनी के इंजीनियरों ने देखा कि जो हाथी लाइन बिछाने के लिए सामान लेकर आ रहे हैं, उनके पैर तेल से सने हुए हैं. यह देखकर इंजीनियरों की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने इसकी सूचना कंपनी के अधिकारियों को दी और फिर वहां पर तेल की खोज में खुदाई शुरू हो गई. इस घटना के बाद 1889 में ही असम के डिगबोई में पहला तेल कुआं खोदा गया और भारत का पहला व्यावसायिक रूप से सफल तेल क्षेत्र बन गया.
डिगबोई में कब शुरू हुई खुदाई
असम रेलवे एंड ट्रेडिंग कंपनी की ओर से असम के डिगबोई में तेल के अकूत भंडार की खोज किए जाने के बाद सितंबर 1889 में खुदाई शुरू की गई और 662 फीट की गहराई पर तेल मिला. यह भारत का पहला व्यावसायिक रूप से सफल तेल कुआं था, जिसे ‘वेल नंबर 1’ के नाम से जाना गया.
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क्यों पर डिगबोई नाम
असम में डिब्रूगढ़ और मार्गेरेटा के बीच जिस स्थान पर तेल के कुएं की खुदाई की गई, उस स्थान का नाम डिगबोई रखा गया. इस नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1889 में तेल के अकूत भंडार का पता चलने के बाद जब वहां पर कुएं की खुदाई चल रही थी, इस काम में लगे मजदूर “डिग, बॉय, डिग!” यानी खोदो बालक, खोदो के नारे जोर-जोर से लगाते थे. इसके बाद इस जगह का नाम “डिगबोई” पड़ गया. यह खोज भारत के तेल उद्योग में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई और बाद में 1901 में डिगबोई में एशिया की पहली तेल रिफाइनरी स्थापित की गई.
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