Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “पत्नी को पति को लट्टू की तरह नहीं घुमाना चाहिए. कोर्ट ने दंपत्ति को यह भी सलाह दी कि वे अपने अहंकार को किनारे रखकर अपने बच्चे के भले के लिए फैसला लें.
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की खंडपीठ ने उस समय की जब पत्नी ने पति के कई सुझावों को मानने से इनकार कर दिया, जबकि पति ने अपने मतभेद सुलझाने और बच्चे से मिलने की इच्छा जताई थी.
पति दिल्ली में, पत्नी पटना में रहती है
इस मामले में पति दिल्ली में रेलवे विभाग में कार्यरत है, जबकि पत्नी पटना में अपने माता-पिता के साथ रहती है और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) में नौकरी करती है. बच्चा भी फिलहाल मां के साथ ही है. पति ने कोर्ट में बताया कि उसके ससुराल वालों ने उसके खिलाफ केस दर्ज किया है. इसलिए वह उनके घर पर नहीं रह सकता. उसने अदालत से कहा कि वह पटना में अलग आवास लेकर रहेगा और हर सप्ताह बच्चे से मिलने जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने पति की मांग को माना वाजिब
सुप्रीम कोर्ट ने पति के इस प्रस्ताव को तर्कसंगत (reasonable) बताया और पत्नी के वकील से कहा कि वे उसे समझाने की कोशिश करें. हालांकि, पत्नी ने कोर्ट में पति का प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया. कोर्ट को बताया गया कि पत्नी अपने ससुराल वालों से मतभेदों की वजह से दिल्ली आने से हिचक रही है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि या तो पति पटना में ही मुलाकात की व्यवस्था करे, या फिर अपने माता-पिता को कुछ समय के लिए होटल या गेस्ट हाउस में ठहराए ताकि पत्नी दिल्ली आ सके.
कोर्ट ने माता-पिता की स्थिति पर जताई चिंता
अदालत ने इस विवाद में माता-पिता की स्थिति पर भी चिंता जताई और कहा, “माता-पिता की भी क्या स्थिति है, उन्हें घर छोड़ना पड़ रहा है क्योंकि बहू उनके साथ नहीं रहना चाहती.”जज नागरत्ना ने कहा कि ऐसे मामलों में परिवार के बुजुर्गों को भी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है, जो सही नहीं है.
मध्यस्थता से सुलझाने की दी सलाह
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को मध्यस्थता (Mediation) के ज़रिए मतभेद सुलझाने की सलाह दी. कोर्ट ने कहा कि बच्चे के भविष्य और भावनात्मक विकास के लिए माता-पिता का आपसी सहयोग जरूरी है. साथ ही यह भी जोड़ा कि “अहंकार किसी रिश्ते को मजबूत नहीं बनाता, बल्कि तोड़ देता है.



