जॉय मुखर्जी हिंदी फिल्मों के पहले चॉकलेटी बॉय थे। वह पहले हीरो थे जो पहली बार स्क्रीन पर शर्टलेस नजर आए थे। वह अपने डांस और रोमांटिक किरदारों के लिए जाने जाते हैं। उनका जन्म 24 फरवरी, 1939 को झाँसी में एक प्रमुख फ़िल्मी परिवार में हुआ था, जिसके सदस्य बॉलीवुड से गहराई से जुड़े हुए थे। उनके पिता शशिधर मुखर्जी एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और फिल्मालय स्टूडियो के सह-संस्थापक थे। उनकी मां सती देवी किशोर कुमार की बहन थीं। उनके भाई देब मुखर्जी और शोमू मुखर्जी थे और अभिनेत्री काजोल उनकी भतीजी हैं। उन्होंने देहरादून के कर्नल ब्राउन कैंब्रिज स्कूल और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई की।
अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1960 में फिल्म ‘लव इन शिमला’ से की, जिसमें उनके साथ साधना थीं। इस फिल्म से वह रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित हो गये। 60 के दशक में उन्होंने कई सफल रोमांटिक फिल्मों में काम किया। उनकी जोड़ी अक्सर आशा पारेख और सायरा बानो जैसी अभिनेत्रियों के साथ बनती थी।
फिर उन्होंने वही दिल लाया हूं (1963), जिद्दी (1964), लव इन टोक्यो (1966), शागिर्द (1967), एक मुसाफिर एक हसीना (1962) जैसी फिल्मों में काम किया। 1960 के दशक के अंत तक, रोमांटिक आइकन राजेश खन्ना के उदय के साथ, जॉय मुखर्जी की लोकप्रियता कम होने लगी और उन्हें मुख्य भूमिकाएँ मिलनी बंद हो गईं। इस बीच उनकी कई फिल्में भी नहीं चलीं.
जब अभिनय भूमिकाएँ दुर्लभ हो गईं, तो उन्होंने निर्देशन और निर्माण में कदम रखा। उनकी पहली निर्देशित फिल्म हमसाया थी, जो व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रही। हालाँकि उन्होंने 1977 में राजेश खन्ना अभिनीत छैला बाबू का निर्देशन किया, जो एक बड़ी सफलता साबित हुई और उन्हें वित्तीय परेशानियों से बाहर निकाला। 1985 में उन्होंने फिल्म ‘इंसाफ मैं करूंगा’ में नकारात्मक भूमिका निभाई, जो उनकी आखिरी सफल फिल्म थी।
2009 में, वह अपने बेटे सुजॉय मुखर्जी के साथ टीवी धारावाहिक ऐ दिले नादान में भी दिखाई दिए। जॉय मुखर्जी का 9 मार्च को 73 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। जॉय मुखर्जी की फिल्में आज भी उनके प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय हैं। उन्हें एक ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने हिंदी सिनेमा में रोमांस को नया आयाम दिया।