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महाकाल में 300 साल से शहनाई वादन की परंपरा, अब पांच आरतियों में बैंड भी बजेगा


विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर की संगीत परंपरा में बैंड के रूप में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। पिछले 300 सालों से मंदिर में सुबह-शाम शहनाई बजती आ रही है। लेकिन अब पांच आरतियों के दौरान बैंड भी बजेगा. मंदिर समिति अपना स्वयं का बैंड बनाने जा रही है। इसके लिए वाद्य यंत्रों का ट्रायल चल रहा है।

प्रकाशित तिथि: शुक्र, 17 अक्टूबर 2025 08:24:46 पूर्वाह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: शुक्र, 17 अक्टूबर 2025 10:24:43 पूर्वाह्न (IST)

महाकाल में 300 साल से शहनाई बजाने की परंपरा

राजेश वर्मा, नईदुनिया उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर की संगीत परंपरा में बैंड के रूप में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। पिछले 300 सालों से मंदिर में सुबह-शाम शहनाई बजती आ रही है। लेकिन अब पांच आरतियों के दौरान बैंड भी बजेगा. मंदिर समिति अपना स्वयं का बैंड बनाने जा रही है। इसके लिए वाद्य यंत्रों का ट्रायल चल रहा है। इसके बाद आउट सोर्स के जरिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी. दानदाताओं के सहयोग से संगीत वाद्ययंत्र भी खरीदे जायेंगे।

पालकी के आगे-आगे पुलिस बैंड रहता है

महाकाल मंदिर में प्रतिदिन भस्म आरती संपन्न होने के बाद सुबह 6 बजे और शाम को 7 बजे शहनाई बजाई जाती है. यह परंपरा सिंधिया स्टेट के समय से चली आ रही है। 300 वर्ष पुरानी शहनाई वादकों की वंशावली के अनुसार आज भी वे निर्धारित समय पर शहनाई बजाने आते हैं। इसके अलावा श्रावण-भाद्रपद माह में निकलने वाली भगवान महाकाल की सवारी में भी पुलिस बैंड अपनी सेवा देता है। मंदिर की परंपरा के अनुसार, पुलिस बैंड हमेशा पालकी के आगे चलता है।

बैंड बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई

वाद्ययंत्र बजाने की यह परंपरा अब समृद्ध होती दिख रही है। मंदिर समिति अब अपना बैंड तैयार कर रही है. यह बैंड श्रावण-भादौ मास की सवारी के अलावा प्रतिदिन होने वाली भगवान महाकाल की पांच आरतियों में भी बजेगा। मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिक ने बताया कि महाकाल मंदिर में बैंड बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. संगीतकारों की भर्ती के लिए ट्रायल आयोजित किये जा रहे हैं.

शिव संगीत के देवता हैं, इसलिए संगीत वाद्ययंत्रों की परंपरा चली आ रही है।

पं. महेश पुजारी ने कहा कि भगवान शिव संगीत और नृत्य के देवता हैं. इसीलिए उन्हें नटराज और कलाधर भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में शिव को वाद्ययंत्रों का निर्माता भी कहा गया है। यही कारण है कि महाकाल मंदिर की पूजा परंपरा में वाद्ययंत्र बजाने का महत्व है। श्रावण महोत्सव, उमा सांझी उत्सव में गीत, संगीत और नृत्य की कला त्रिवेणी से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

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