किसी भी समाज और देश की प्रगति में शिक्षा का विशेष योगदान होता है। हाल ही में जारी टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड रेपुटेशन रैंकिंग में भारत के चार प्रमुख विश्वविद्यालय भी शामिल हैं, जिनमें आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मद्रास और शिक्षा ‘ओ’ रिसर्च चौथे स्थान पर हैं। भारत के विश्वविद्यालय और अन्य उच्च शिक्षण संस्थान भी पिछले कुछ वर्षों में प्रगति की नई ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं, लेकिन जब इन शिक्षण संस्थानों की विश्व स्तरीय रैंकिंग सामने आती है, तो हमारे उच्च शिक्षण संस्थान प्रतिस्पर्धा में बहुत पीछे नजर आते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि तथाकथित विकसित देशों के शिक्षण संस्थान किताबी ज्ञान के साथ-साथ कौशल विकास को भी प्राथमिकता देते हैं।
सोचने वाली बात यह भी है कि इन विश्वविद्यालयों सहित भारत के सभी उच्च शिक्षण संस्थान जो पिछली बार रैंकिंग में शामिल थे, उनकी रैंकिंग में इस बार गिरावट आई है। यह हमारे लिए संतोष की बात हो सकती है कि भारत का नाम विश्वस्तरीय रैंकिंग में आता है, लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि आखिर क्या कारण हैं कि हमारे ज्यादातर संस्थान ऐसी रैंकिंग में जगह नहीं बना पाते? इतना ही नहीं, जो संस्थान एक बार रैंक सूची में आ जाते हैं, वे अगली बार निचली रैंक में क्यों दिखने लगते हैं? जाहिर है, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अभी और प्रयास करने होंगे।
इसके अलावा किताबी शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है। इसके अलावा टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल बिठाते हुए इनोवेशन को बढ़ावा देना होगा और रिसर्च पर भी उतना ही जोर देना होगा। हमें भारतीय विज्ञान संस्थान, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मद्रास और सूची में नया नाम शिक्षा ‘ओ’ रिसर्च जैसे और संस्थान बनाने होंगे। यह तभी संभव है जब हमारे संस्थानों में विश्वस्तरीय संसाधन एवं सुविधाएं उपलब्ध हों।
वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो हमारे छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों के शीर्ष शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने के लिए उत्सुक हैं। जो लोग इन संस्थानों में प्रवेश लेने में सफल होते हैं उनमें से अधिकांश को वहीं रोजगार भी मिल जाता है। प्रतिभा पलायन का प्रमुख कारण यह है कि भारत में कुछ ही विश्व स्तरीय संस्थान हैं।
हमारे नीति निर्माताओं को इस बात पर विचार करना होगा कि यदि हम भविष्य में अपने संस्थानों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी और बेहतर बनाना चाहते हैं तो हमें अपनी शिक्षा में नवाचार, कौशल प्रशिक्षण और गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा। नई शिक्षा नीति भी ऐसे अवसर प्रदान करती है। इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रतिभाओं का उपयोग हमारे देश में ही हो।