भारत को बड़े पैमाने पर उत्पादित क्रूज़ मिसाइल की आवश्यकता है: ऑपरेशन सिन्दूर ने भारत की सैन्य रणनीति को एक नया मोड़ दिया। ब्रह्मोस मिसाइल ने कुछ ही मिनटों में पाकिस्तान की सैन्य तैयारियों को हिलाकर रख दिया, लेकिन इस सफलता ने एक और सवाल खड़ा कर दिया कि क्या भारत एक बेहद शक्तिशाली लेकिन बेहद महंगे हथियार पर अधिक निर्भर होता जा रहा है? आने वाले युद्ध केवल सटीक हमलों के बारे में नहीं होंगे, बल्कि “संख्या की लड़ाई” भी होंगे। और यहीं से नई बहस शुरू होती है.
ब्रह्मोस का 20 मिनट का हमला – 11 पीएएफ अड्डे बंद
ऑपरेशन सिन्दूर में भारतीय वायुसेना ने जो किया वह अब भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हो गया है. Su-30 MKI से 15 से 19 ब्रह्मोस मिसाइलें दागी गईं और लगभग हर मिसाइल ने अपने लक्ष्य पर सटीकता से हमला किया। पूरा हमला सिर्फ 20 मिनट तक चला और पाकिस्तान के 10 से 11 एयरबेस या तो ध्वस्त हो गए या फिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए. पाकिस्तान कमांड को समझ नहीं आया कि इतना तेज़ और सटीक हमला कैसे हो गया. सबसे दिलचस्प बात ये है कि ब्रह्मोस की सबसे बड़ी तारीफ भारत ने नहीं, बल्कि पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व ने की थी.
पीएम शाहबाज शरीफ का खुला कबूलनामा
अज़रबैजान में एक शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि 10 मई को पाकिस्तान की बड़ी सैन्य कार्रवाई शुरू नहीं हो सकी क्योंकि भारत के ब्रह्मोस हमलों ने रावलपिंडी हवाई अड्डे सहित कई महत्वपूर्ण लक्ष्यों को पहले ही नष्ट कर दिया था। वरिष्ठ पाकिस्तानी नेता राणा सनाउल्लाह ने कहा कि पीएएफ को मिसाइलों के आगमन की चेतावनी केवल 30-45 सेकंड पहले मिली थी। उन्होंने एक डरावनी लाइन भी कही कि सोचिए अगर यह हमला परमाणु होता तो? इस बयान से पता चलता है कि ब्रह्मोस ने किस तरह पाकिस्तान की सामरिक व्यवस्था में खलबली मचा दी थी.
ब्रह्मोस का पहला वास्तविक युद्ध परीक्षण और उम्मीदों से परे सफलता
भारत और रूस की संयुक्त परियोजना ब्रह्मोस पहली बार वास्तविक युद्ध में उतरी। इसकी मैक 3 गति, यानी ध्वनि की गति से तीन गुना अधिक, लक्ष्य पर तुरंत हमला करने की क्षमता और सटीक वार ने इसे ऑपरेशन सिन्दूर में “गेम चेंजर” बना दिया। लेकिन इसकी सफलता ने भारत के सामने एक और सवाल खड़ा कर दिया कि क्या इतने महंगे हथियार का इस्तेमाल बड़े युद्धों में लंबे समय तक किया जा सकता है? समस्या यह है कि ब्रह्मोस शक्तिशाली है, लेकिन बहुत महंगा है और सीमित संख्या में बनाया जाता है। यहीं से रणनीतिक चिंता शुरू होती है। एक ब्रह्मोस की कीमत 2.7 मिलियन से 4 मिलियन डॉलर तक होती है। यह अमेरिका की टॉमहॉक और रूस की कैलिबर से लगभग दोगुना महंगा है। भारत हर साल केवल 50-100 ब्रह्मोस ही बना पाता है। यूपी की नई फैक्ट्री आने के बाद भी यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है।
यूक्रेन के ‘फ्लेमिंगो’ – धीमे, बड़े, लेकिन भारी संख्या में
यूक्रेन की नई फ्लेमिंगो मिसाइल तकनीकी रूप से बेहद सरल मानी जा रही है क्योंकि यह न तो तेज है, न छोटी है और न ही ब्रह्मोस जितनी घातक है। फिर भी इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी 3000 किलोमीटर की रेंज और दैनिक उत्पादन क्षमता है। यूक्रेन इसे एक दिन में करीब 7 मिसाइलें बनाने की रफ्तार से तैयार कर रहा है। यह विशाल संख्या किसी भी दुश्मन की हवाई रक्षा को समाप्त कर देती है और अंततः उसे तोड़ देती है।
भारत को ‘हथौड़े’ के साथ-साथ ‘सर्जिकल टूल्स’ की भी जरूरत
भारतीय सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में होने वाले युद्धों को देखते हुए भारत को दो तरह की मिसाइलों की जरूरत है, एक बेहद सटीक, तेज और दूसरी सस्ती, लंबी दूरी तक मार करने वाली और बड़ी संख्या में बनाई जा सकने वाली। विशेषज्ञ ब्रह्मोस को एक स्केलपेल यानी सर्जिकल हथियार की तरह देखते हैं। तेज़, बेहद सटीक, लागत प्रभावी और उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों के विरुद्ध सबसे प्रभावी। ऑपरेशन सिन्दूर ने दिखाया कि ब्रह्मोस एक विश्वसनीय और अत्यधिक सटीक हमला करने में सक्षम हथियार है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत को एक ऐसी मिसाइल की भी जरूरत है जो हथौड़े की तरह काम करे यानी संख्या के बल पर दुश्मन की हवाई रक्षा को मात दे सके। लंबी दूरी, बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और दुश्मन की रक्षा प्रणालियों पर हावी होने की क्षमता।
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