आरबीआई का पूर्वानुमान: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस साल महंगाई को लेकर लगातार गलत अनुमान लगा रहा है. साल की शुरुआत में वास्तविक मुद्रास्फीति और आरबीआई के पूर्वानुमान के बीच लगभग 0.7 प्रतिशत का बड़ा अंतर था, जो पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है। अगली दो तिमाहियों के अनुमान भी सही नहीं थे. इस कारण से, कई अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि आरबीआई अत्यधिक सतर्क है और उसने ब्याज दरें ऊंची रखी हैं।
मुद्रास्फीति कम होने का क्या प्रभाव पड़ा?
अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों के दाम काफी कम हो गए थे. अच्छी बारिश और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार के कारण, खाद्य पदार्थ सस्ते हो गए थे, और इसका कुल मुद्रास्फीति पर सीधा प्रभाव पड़ा क्योंकि सीपीआई में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी लगभग आधी थी। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जब महंगाई कम थी तो आरबीआई को ब्याज दरें और कम करनी चाहिए थी, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को गति मिल सके.
यह भी पढ़ें: अब इंतजार खत्म, आज पीएम किसान की 21वीं किस्त लेकर आ रही है खुशियों की बौछार!
नीति पर भरोसा क्यों डगमगा सकता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अनुमान बार-बार गलत होते हैं तो बाजार में आरबीआई की साख पर असर पड़ता है। जरूरत न होने पर भी ब्याज दरें ऊंची बनी रहती हैं, जिससे व्यवसायों और आम लोगों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है।
आरबीआई आगे क्या करेगा?
आरबीआई ने पिछले साल अपना नया मॉडल लॉन्च किया था, लेकिन लगातार गलत आंकड़े देने के कारण उसे आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। सरकार अब जल्द ही नया उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी करने जा रही है, जिससे भविष्य में मुद्रास्फीति का सटीक अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आरबीआई दिसंबर में ब्याज दरों में छोटी कटौती कर सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था को कुछ सहारा मिल सकता है।
यह भी पढ़ें: व्यापार युद्ध के बीच आरबीआई का नया निर्यात राहत पैकेज, निर्यातकों को राहत
डिस्क्लेमर: लोकजनता शेयर बाजार से जुड़ी किसी भी खरीदारी या बिक्री के लिए कोई सलाह नहीं देता है. हम बाजार विशेषज्ञों और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से बाजार संबंधी विश्लेषण प्रकाशित करते हैं। परंतु बाज़ार संबंधी निर्णय प्रमाणित विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही लें।



