Rewa News: रीवा: क्लासरूम बन गया है कबूतरखाना, अंदर उड़ते कबूतर, जर्जर छत, टूटी सीमेंट की चादरें और चारों ओर फैली गंदगी, यही है इस कॉलेज की असली तस्वीर. जी हां, रीवा जिले के गोविंदगढ़ का कॉलेज बदहाली की मिसाल बन गया है।
पिछले 10 वर्षों से यह कॉलेज बाणसागर नहर विभाग के जर्जर भवन में चल रहा है, जो अब किसी खंडहर से कम नहीं है. यहां के हालात देखकर कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि यहां छात्रों की पढ़ाई नहीं बल्कि उनकी जान जोखिम में डाली जा रही है.
कक्षा के अंदर कबूतर का घर
छात्रों ने बताया कि कबूतर आए दिन कक्षा में उड़कर गंदगी फैलाते हैं और सफाई कर्मचारी को 5-6 बार सफाई करनी पड़ती है। बरसात के दिनों में कक्षाएं बंद रहती हैं, अंदर पानी भर जाता है, बरसात के दिनों में स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. छात्रों के मुताबिक, बारिश के दौरान कक्षाओं में पानी भर जाता है, छत से लगातार पानी टपकता है, जिसके कारण कई दिनों तक कक्षाएं पूरी तरह से बंद रहती हैं.
शौचालय की व्यवस्था शर्मनाक है
कॉलेज में सभी लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं है. सभी लोग एक ही शौचालय का उपयोग करते हैं। कॉलेज में छात्राओं के लिए अलग शौचालय नहीं है. कार्यालय में एकमात्र शौचालय को पुरुष कर्मचारियों, महिला छात्रों और महिला शिक्षकों को साझा करना पड़ता है, जिससे लगातार असुरक्षा और असुविधा होती है।
भवन में एक साथ तीन कक्षाएं चलती हैं
सभी कक्षाओं में एक साथ आवाजें गूंजती हैं, जिससे पढ़ाई में काफी दिक्कत होती है। साथ ही एक ही भवन में एक साथ तीन-तीन कक्षाएं संचालित होती हैं। जिससे आवाजों की गूंज के कारण पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। विद्यार्थियों ने बताया कि वे पाठ को समझ नहीं पाते और शोर के कारण विचलित हो जाते हैं।
छात्राओं की बेबसी, नहीं मिल रहा कोई विकल्प
दो अलमारियों में कुछ किताबें जब टीम लाइब्रेरी पहुंची तो पाया कि दो अलमारियों में कुछ चुनिंदा किताबें ही रखी हुई थीं। लाइब्रेरी स्टाफ के मुताबिक ये पूरी लाइब्रेरी है. तस्वीरें बताती हैं कि जब किताबें ही नहीं तो लाइब्रेरी में क्या पढ़ें? रीवा 20 किलोमीटर दूर। गुणवत्ता से समझौता होने के बावजूद छात्राएं यहां प्रवेश लेने को मजबूर हैं, क्योंकि रीवा 20 किलोमीटर दूर है और नजदीक में यही एकमात्र कॉलेज है।
सरकार के दावों की खुली पोल!
बेटियों की शिक्षा को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन गोविंदगढ़ कॉलेज की ये स्थिति उन दावों की पोल खोलती है. आजादी के 79 साल बाद भी छात्र खंडहरों में पढ़ने को मजबूर हैं, यह शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता का उदाहरण है।
कॉलेज में बैठने की समस्या
बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा मुस्कान बानो ने कहा कि इस कॉलेज में कई समस्याएं हैं, जिनमें से एक है बैठने की समस्या। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस कॉलेज में लाइब्रेरी तो है लेकिन बैठ कर पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं है जहां बैठ कर हम पढ़ सकें. ऊपर से यह डर भी है कि यह इमारत कभी भी गिर सकती है.
प्राचार्य ने कहा कि पिछले 10 वर्षों से यही व्यवस्था है
नए भवन के लिए बजट मिल गया है। प्राचार्य का कहना है कि कॉलेज फिलहाल बाणसागर नहर विभाग के भवन में संचालित हो रहा है. नई बिल्डिंग के लिए बजट मंजूर हो चुका है और जल्द ही निर्माण शुरू होने की बात कही जा रही है। हम सरकार द्वारा दी गई व्यवस्था के साथ काम कर रहे हैं.’ उम्मीद है कि यह आखिरी साल होगा, जिसके बाद नई बिल्डिंग मिलेगी। यह कॉलेज 2015 से एक ही भवन में चल रहा है। हम समय-समय पर सरकार को पत्र लिखते रहते हैं।



