लाल किला हमला: डॉ. उमर उन नबी के साथियों से पूछताछ में खुलासा हुआ है कि पुलवामा-फरीदाबाद का यह स्व-कट्टरपंथी आतंकी मॉड्यूल कम से कम तीन साल से भारत में हमले की योजना बना रहा था. उमर लाल किले पर हुए आत्मघाती हमले में शामिल था. जांच एजेंसियां अब पूरी साजिश की जांच कर रही हैं. इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स ने खबर प्रकाशित की है. खबरों के मुताबिक, उमर और उनके सहयोगी डॉ. मुजम्मिल शकील और अदील अहमद राथर टेलीग्राम के जरिए अबू अकाशा नाम के शख्स से जुड़े थे.
बताया गया है कि साल 2022 में उन्होंने तुर्किये में दो इस्लामवादियों (मोहम्मद और उमर) से भी मुलाकात की थी। भले ही इनके नाम सामान्य लगते हों, लेकिन जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, पुलवामा के तीनों डॉक्टर अफगानिस्तान जाकर मुस्लिम उत्पीड़न का संदेश सबके सामने रखना चाहते थे और पैन-इस्लामिक एजेंडे का समर्थन करना चाहते थे. अब एजेंसियां इन तीनों संदिग्ध इस्लामवादियों की असली पहचान का पता लगाने की कोशिश कर रही हैं.
पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद की सीधी भूमिका का कोई सबूत नहीं
सुरक्षा एजेंसियों को अभी तक इस आत्मघाती हमले में पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद की सीधी भूमिका के सबूत नहीं मिले हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस मॉड्यूल के आतंकियों ने इतना खतरनाक विस्फोटक तैयार किया था, जिसमें आग लगाने वाला रसायन और अमोनियम नाइट्रेट मिलाकर विस्फोटक का तापमान काफी कम कर दिया गया था. इसी वजह से जब फॉरेंसिक टीम जांच के दौरान नमूने ले रही थी, तभी नवगाम पुलिस स्टेशन में बरामद विस्फोटक में अचानक विस्फोट हो गया. इस हादसे में सुरक्षाकर्मियों समेत नौ लोगों की मौत हो गई.
यह भी पढ़ें: लाल किला ब्लास्ट: आतंकी उमर का एक और साथी गिरफ्तार, धमाके की साजिश में शामिल था आरोपी
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों की प्रमुख चिंता क्या है?
लाल किला विस्फोट के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिए सीमा पार से होने वाली आतंकी गतिविधि का पता लगाया जा सकता है, लेकिन स्थानीय आतंकवादियों (जो खुद कट्टरपंथी बन जाते हैं) के छोटे मॉड्यूल का कोई इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं है। इसलिए इन्हें पकड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है.



