आईसीटी बांग्लादेश: बांग्लादेश की राजनीति में सोमवार का दिन ऐतिहासिक और उथल-पुथल भरा रहा। अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में देश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाई। संस्कृति मंत्रालय ने ढाका में बड़ी-बड़ी स्क्रीनें लगवाईं, जहां लोग फैसले को लाइव देखते रहे. कोर्ट के मुताबिक, हसीना ने अपने गृह मंत्री और पुलिस प्रमुख के साथ मिलकर पिछले साल छात्र आंदोलन के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की थी. कोर्ट ने कहा कि 5 अगस्त को चंखारपुल में छह लोगों की ‘घातक हथियारों’ से हत्या कर दी गई थी और आदेश ऊपर से आया था.
आईसीटी-अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) बांग्लादेश में एक विशेष अदालत है, जिसे 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए नरसंहार, युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए बनाया गया था। इस अदालत का उद्देश्य पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों, जैसे रज़ाकार, अल-बद्र और अल-शम्स जैसे समूहों द्वारा किए गए अपराधों के लिए न्याय प्रदान करना था। 1971 के युद्ध में लगभग 30 लाख लोगों की जान चली गई और हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। यही वह पृष्ठभूमि थी जिसने इस न्यायालय की आवश्यकता को जन्म दिया। आईसीटी के अंदर एक विशेष न्यायाधीश, जांच एजेंसी और अभियोजन टीम है। मामलों के त्वरित निपटारे के लिए दो अलग-अलग बेंच, आईसीटी-1 और आईसीटी-2 भी बनाई गईं।
ICT का इतिहास- इस पूरे सिस्टम की शुरुआत कैसे हुई?
जब 2009 में अवामी लीग सरकार सत्ता में लौटी, तो उसने अपने पुराने वादे के तहत सक्रिय रूप से आईसीटी का निर्माण और संचालन शुरू कर दिया। इस अदालत का पूरा आधार अंतर्राष्ट्रीय अपराध (न्यायाधिकरण) अधिनियम, 1973 है, जो सरकार को नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों की जांच करने और दोषियों को दंडित करने का अधिकार देता है। देश और दुनिया से न्याय की मांग उठने के बाद यह कानून बनाया गया, ताकि युद्ध के पीड़ितों और उनके परिवारों को इतने वर्षों के बाद भी न्याय मिल सके। अपने गठन के बाद ICT ने कई राजनीतिक नेताओं और संगठनों के शीर्ष लोगों को आजीवन कारावास और मौत की सज़ा जैसे कई बड़े फैसले दिए। इनमें नरसंहार, सामूहिक बलात्कार और लक्षित हत्या जैसे गंभीर अपराध शामिल थे।
आईसीटी बांग्लादेश: शेख हसीना का मामला
शेख हसीना के खिलाफ यह फैसला आईसीटी के इतिहास का सबसे बड़ा और विवादास्पद फैसला माना जा रहा है. अदालत के मुताबिक, छात्र आंदोलन पर कार्रवाई में हसीना की सीधी भूमिका साबित हुई और इसे मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में रखा गया। आईसीटी भले ही 1971 के अपराधों के लिए बनाई गई हो, लेकिन इस फैसले से पता चला कि यह अदालत आज के मामलों में भी सख्त कार्रवाई करने की ताकत रखती है.
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