रुपये का मूल्यह्रास: हर कुछ महीनों में भारतीय रुपया ख़बरों में आ जाता है, और अक्सर अच्छे कारणों से नहीं। हाल ही में रुपया 3 पैसे गिरकर 88.73 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है. अमेरिकी डॉलर में मजबूती और फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल के रेट कट पर संदेह के बाद रुपये पर दबाव बढ़ गया है. इससे पहले भी विदेशी निवेश में कमी, नई जीएसटी दर और अमेरिका की टैक्स नीतियों जैसे कारणों से रुपया कमजोर हुआ था.
रुपया गिरे…तो हमें फर्क क्यों पड़ता है?
जब रुपये की कीमत गिरती है तो विदेश यात्रा, विदेश में पढ़ाई, दवाइयां और ऑनलाइन शॉपिंग भी महंगी हो जाती है। यहां तक कि विदेश में किए गए निवेश की लागत भी बढ़ जाती है. दरअसल, रुपये की गिरावट धीरे-धीरे हमारी क्रय शक्ति यानी पैसे की ताकत को कम कर देती है। यही कारण है कि केवल रुपये पर आधारित निवेश कभी-कभी जोखिम भरा साबित हो सकता है।
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क्या सिर्फ भारत में निवेश ही काफी है?
भारत में बड़े प्रोजेक्ट, डिजिटल ग्रोथ और बढ़ती अर्थव्यवस्था जैसी काफी संभावनाएं हैं। लेकिन यह भी सच है कि भारत एक उभरता हुआ बाजार है, जहां नीतियां बदलती रहती हैं और कभी-कभी अनिश्चितता भी रहती है। ऐसे में निवेशकों के लिए जरूरी है कि वे अपनी संपत्ति का एक हिस्सा विदेशी बाजारों में भी निवेश करें, ताकि किसी एक देश या मुद्रा पर पूरी तरह निर्भरता न रहे।
वैश्विक निवेश में क्यों बढ़ रही है प्रवृत्ति?
Apple, Google, Microsoft या NVIDIA जैसी दुनिया की सबसे बड़ी और इनोवेटिव कंपनियां भारतीय शेयर बाजार में सूचीबद्ध नहीं हैं। यदि युवा निवेशक ऐसी वृद्धि का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय निवेश से जुड़ना होगा। इसके अलावा रुपया कमजोर होने पर भी डॉलर में निवेश करने से फायदा मिलता है।
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