भारत में कई प्राचीन और पवित्र मंदिर हैं, जहां भक्तों की आस्था अटूट मानी जाती है। इन्हीं में से एक है तिरुपति बालाजी मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों भक्त पहुंचते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के बीच बाल चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
प्रकाशित तिथि: सोम, 17 नवंबर 2025 05:28:24 पूर्वाह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: सोम, 17 नवंबर 2025 05:28:24 पूर्वाह्न (IST)
धर्म डेस्क. भारत में कई प्राचीन और पवित्र मंदिर हैं, जहां भक्तों की आस्था अटूट मानी जाती है। इन्हीं में से एक है तिरुपति बालाजी मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों भक्त पहुंचते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के बीच बाल चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आइए जानते हैं इस परंपरा के पीछे की कहानी क्या है।
ऋषि भृगु और यज्ञफल की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार विश्व कल्याण के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया। प्रश्न उठा कि इस यज्ञ का फल किसे अर्पित किया जाए। यह जिम्मेदारी ऋषि भृगु को दी गई। वह पहले ब्रह्मा जी के पास गए, फिर भगवान शिव के पास, लेकिन उन्हें दोनों में से कोई भी योग्य नहीं लगा। आख़िरकार वे वैकुंठ पहुँचे, जहाँ भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे।
विष्णु जी को ऋषि भृगु के आगमन के बारे में पता नहीं चला, जिसे ऋषि भृगु ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर उन्होंने विष्णु जी की छाती पर अपने पैर से प्रहार किया। भगवान विष्णु ने विनम्रतापूर्वक ऋषि के पैर पकड़ लिए और पूछा, “ऋषिवर, क्या आपके पैर में चोट लगी है?” उनके व्यवहार से भृगु को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने यज्ञ का फल भगवान विष्णु को समर्पित करने का निर्णय लिया।
लक्ष्मी जी नाराज होकर बैकुंठ क्यों चली गईं?
ऋषि द्वारा किया गया यह अपमान देखकर देवी लक्ष्मी अत्यंत दुखी हो गईं। वह चाहती थीं कि इसका प्रतिकार किया जाए, लेकिन भगवान विष्णु ने ऐसा नहीं किया। इससे रुष्ट होकर लक्ष्मी जी वैकुण्ठ छोड़कर पृथ्वी पर रहने लगीं। विष्णु जी ने उन्हें बहुत खोजा, लेकिन वे नहीं मिले। अंततः श्रीहरि ने श्रीनिवास के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया।
भगवान शिव और ब्रह्मा ने भी उनकी सहायता के लिए गाय और बछड़े का रूप धारण किया। लक्ष्मी जी पद्मावती के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुईं और बाद में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह भी हुआ।
बाल चढ़ाने की परंपरा कैसे शुरू हुई?
भगवान विष्णु ने कुछ विवाह अनुष्ठानों के लिए कुबेर देव से धन उधार लिया था और कलियुग के अंत तक ब्याज सहित ऋण वापस करने का वादा किया था। इसी कारण से, तिरुपति में भक्त कर्ज मुक्ति के लिए भगवान को पैसे दान करते हैं। इसी क्रम में बाल दान भी एक प्रमुख परंपरा बन गई। ऐसा माना जाता है कि भक्त जो भी बाल चढ़ाता है, भगवान उसे बदले में कई गुना फल देते हैं और देवी लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
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