प्रशांत किशोर ने शिक्षा पर बातें तो बहुत कीं, लेकिन सुधार का कोई ठोस मॉडल नहीं दे सके. उन्होंने कहा कि शराबबंदी खत्म कर सरकार जो भी कमाएगी वह शिक्षा पर खर्च करेगी. साथ ही जब तक सरकारी स्कूलों में सुधार नहीं होगा तब तक बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ने के लिए सरकारी पैसा दिया जाएगा. इससे मतदाताओं के बीच यह धारणा बनी कि वे निजी शिक्षा माफिया से मिले हुए हैं और सरकारी शिक्षा को बर्बाद करना चाहते हैं। मतदाताओं का मानना था कि अगर बच्चे निजी स्कूलों में जायेंगे तो सरकारी स्कूल खाली हो जायेंगे, जिससे शिक्षक और अन्य कर्मचारी भी देर-सबेर बेरोजगार हो जायेंगे. इतना ही नहीं सरकार को दोहरे खर्च का बोझ भी उठाना पड़ेगा. अतः जनता को यह विचार अपरिपक्व एवं अव्यावहारिक लगा।



