नई दिल्ली। बिहार चुनाव में नमो और नीतीश की जोड़ी हिट रही. एनडीए की सुनामी में तेजस्वी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाला महागठबंधन बह गया. एनडीए 243 में दो सौ सीटों का आंकड़ा पार कर इतिहास रच दिया। जंगलराज बनाम सुशासन की कहानी पर आधारित गठबंधन ने इस तरह चुनाव लड़ा कि 20 साल से राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मामूली एंटी-इनकंबेंसी भी प्रो-इनकंबेंसी में बदल गई। ये नतीजे केंद्र की मोदी और राज्य की नीतीश सरकार की सार्वजनिक विश्वसनीयता को भी साबित करते हैं. शायद यही वजह है कि तेजस्वी यादव के हर परिवार को सरकारी नौकरी और महिलाओं को 30 हजार रुपये देने जैसे वादे खारिज हो गये. 2010 में 206 सीटें जीतने वाली बीजेपी और जेडीयू का यह दूसरा सबसे बड़ा प्रदर्शन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सुशासन, विकास और सामाजिक न्याय की जीत बताया है. एनडीए का महिला-युवा (एमवाई) फैक्टर महागठबंधन के मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण पर भारी पड़ा. राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि 2024 में बीजेपी के बहुमत से चूक जाने के कारण पार्टी से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग अगले चुनावों में काफी मुखर होकर वोट कर रहा है. महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के बाद बिहार के नतीजे इसकी गवाही देते हैं.



