पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक तरफ जहां एनडीए ने भारी बहुमत से जीत हासिल की, वहीं कुछ सीटें ऐसी भी रहीं, जहां मुकाबला इतना रोमांचक था कि आखिरी राउंड तक नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया। लेकिन इन करीबी मुकाबलों में भी बीजेपी और उसके सहयोगियों ने अपनी बढ़त बरकरार रखी और जीत दर्ज की. इन सीटों के नतीजे बताते हैं कि वोटों का मामूली अंतर भी बिहार की राजनीति में पूरा समीकरण बदल सकता है.
1. संदेश सीट- कुछ सौ वोटों से जीत का फैसला
संदेश विधानसभा में मुकाबला बेहद करीबी रहा. शुरुआती राउंड में बढ़त कई बार बदलती रही, लेकिन अंतिम राउंड में बीजेपी प्रत्याशी ने निर्णायक बढ़त बना ली. यह सीट इस चुनाव के सबसे रोमांचक मुकाबलों में शामिल रही.
2. अगियांव- छिटपुट वोटों का खेल
अगिआंव सीट पर भी काफी कड़ा मुकाबला देखने को मिला. प्रत्येक राउंड में अंतर कुछ सौ वोटों तक सीमित था। अंत में एनडीए उम्मीदवार बहुत ही कम अंतर से जीत गए. यह सीट साबित करती है कि स्थानीय मुद्दे और बूथ स्तर की रणनीतियाँ चुनाव परिणामों को कैसे प्रभावित करती हैं।
3. फारबिसगंज- आखिरी राउंड में गेम बदल गया
फारबिसगंज में राजद और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर रही। आखिरी राउंड में बीजेपी प्रत्याशी को बढ़त मिल गई, जिससे पूरा माहौल बदल गया. यहां की जीत ने साबित कर दिया कि एनडीए का कैडर बेस कितना मजबूत है।
4. बोधगया- दिनभर सस्पेंस बना रहा
बोधगया में वोटों का अंतर ऊपर-नीचे होता रहा. कई बार ऐसा लगा कि यहां महागठबंधन बढ़त बना लेगा, लेकिन आखिरी राउंड में बीजेपी ने बाजी मार ली. यह सीट एनडीए के लिए प्रतिष्ठा का विषय मानी जा रही थी.
5. बख्तियारपुर- सबसे रोमांचक मुकाबला, 981 वोटों से जीत
पांचवीं और निकटतम सीट बख्तियारपुर कर रहा है। इधर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अरुण कुमार द्वारा 981 वोट के अंतर से जीत हासिल की.
- अरुण कुमार को मिला: 88,520 वोट
- राजद के अनिरुद्ध कुमार को मिला: 87,539 वोट
यह परिणाम न सिर्फ एलजेपी (रामविलास) के बढ़ते जनाधार को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि स्थानीय स्तर पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत है.
एनडीए क्यों जीती? क्या थी बड़ी वजह?
1. मोदी-नीतीश फैक्टर
एनडीए की ऐतिहासिक जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त साख और छवि ने निर्णायक भूमिका निभाई.
- बीजेपी के पास है 89 सीटें जीत गया
- जेडीयू के पास है 85 सीटें हासिल किया
दोनों पार्टियों की संयुक्त रणनीति और गठबंधन की ताकत ने विपक्ष को कड़ी चुनौती दी.
2. बूथ मैनेजमेंट और कैडर की मजबूती
बूथ स्तर पर बीजेपी और जेडीयू का मैनेजमेंट काफी मजबूत था, जिसका असर इन करीबी मुकाबलों में साफ नजर आया. हर वोट को संभालने की रणनीति कारगर रही.
3.महागठबंधन की कमजोरी
इस चुनाव में महागठबंधन कमजोर साबित हुआ.
- सिर्फ राजद 25 सीटें मिला
- कांग्रेस और अन्य सहयोगी दल भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके
तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित किया गया, लेकिन यह रणनीति मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सकी.
4. छोटे दलों और निर्दलियों का बढ़ता प्रभाव
इन 5 सीटों के नतीजे बताते हैं कि बिहार में सिर्फ बड़ी पार्टियां ही नहीं
- छोटे समूह
- युवा उम्मीदवार
- स्वतंत्र नेता
- स्थानीय मुद्दे
चुनाव नतीजों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहे हैं. बख्तियारपुर की जीत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
बिहार की राजनीति में नया संकेत: बदल रहे हैं समीकरण!
यह चुनाव साफ संकेत दे रहा है कि बिहार का राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है.
- छोटे दलों का प्रभाव बढ़ रहा है
- युवा नेतृत्व उभर रहा है
- स्थानीय मुद्दे पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं
- भविष्य में गठबंधन की राजनीति और निर्णायक होगी
एनडीए की व्यापक जीत और इन 5 करीबी मुकाबलों ने यह साफ कर दिया है कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति में नई रणनीति, नए चेहरे और नए समीकरण देखने को मिलेंगे.
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