Bihar Election 2025: सुजीत कुमार सिंह, औरंगाबाद/ वर्ष 1977. यह वो वर्ष था जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ देश में विरोध का स्वर था. औरंगाबाद की राजनीति करवटे ले रहीं थी. बृजमोहन सिंह उस वक्त राष्ट्रीय कांग्रेस संगठन के विधायक थे. गया जिले से कटकर औरंगाबाद को जिला बनने की एक खुशी थी. चुनौती भी बड़ी थी. ऊपर से आपातकाल का प्रभाव था. औरंगाबाद जिले के लोगों ने आपातकाल के भीषण बर्बरता को सहा और देखा था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति लोगों में रोष था. हालांकि 1977 के आम चुनाव के साथ ही आपातकाल खत्म हो गया. चुनावी अधिसूचना जारी हुई तो एक सख्श अचानक औरंगाबाद की राजनीति में उभरकर आ गया, जिनका नाम था रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू. जैसे-जैसे चुनावी तैयारी शुरू हुई, वैसे-वैसे प्रत्याशियों के नामों की चर्चा भी होने लगी. लूटन सिंह के साथ रहे उनके समर्थकों ने नेता नहीं फकीर है, देश का तकदीर है… का नारा दिया और यह नारा घर-घर गूंजने लगा. हालांकि उस वक्त नौ पार्टियों के विलय से बनी जनता पार्टी का एक अलग प्रभाव था.
13 प्रत्याशियों ने किया नामांकन
औरंगाबाद विधानसभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई तो 13 प्रत्याशियों ने नामांकन का पर्चा दाखिल किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह पर भरोसा जताया, जबकि जनता पार्टी से बृजमोहन सिंह उम्मीदवार बने. छह अक्टूबर 1977 को 130 मतदान केंद्रों पर मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई. चंद माह पहले लोकसभा का चुनाव भी हुआ था. ऐसे में मतदाताओं में खासा उत्साह नहीं था. इसके बाद भी शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न हो गया. एक लाख 11 हजार 26 मतदाताओं में 50 हजार 289 मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया. 45.29 प्रतिशत मतदान हुआ. रामनरेश सिंह को 16 हजार 443 यानी 33.58 और बृजमोहन सिंह को 15 हजार 309 यानी 31.26 प्रतिशत मत प्राप्त हुए. कांटे की इस टक्कर में 1134 मतों से रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह ने जीत का परचम लहराया. 4434 मत लेकर निर्दलीय प्रत्याशी सरयू सिंह तीसरे नंबर पर रहे.
1980 में निर्दलीय विधायक बने लूटन
1977 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से टिकट पाकर जीत दर्ज करने वाले रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह को 1980 के चुनाव में टिकट से वंचित होना पड़ा. उनकी जगह पर रामगोविंद प्रसाद सिंह को प्रत्याशी बनाया गया. ऐसे में लूटन सिंह ने निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. पहली बार औरंगाबाद सीट से राधारानी सिंह को चुनाव लड़ने की चर्चा छिड़ी. उन्होंने नामांकन भी किया. यह वह दौर था जब चौखठ से निकलकर महिला जनता का नेतृत्व करने की सोच से आगे बढ़ी थी. 1980 में नौ प्रत्याशियों ने नामांकन किया, लेकिन लूटन सिंह का प्रभाव इतना जबर्दस्त था कि उन्हें निर्दलीय ही समर्थन मिलने लगा. 21 हजार 149 मत प्राप्त कर अपने प्रतिद्वंदी शोषित समाज दल के सूरजदेव सिंह को छह हजार 793 मतों से पराजित कर दिया. उस वक्त लूटन सिंह पर बूथ लूटने का भी आरोप लगा था. यही कारण था कि रामनरेश सिंह की जगह लूटन सिंह के तौर पर उनकी चर्चाएं अधिक होती है. हालांकि 1985 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी रामनरेश सिंह को बृजमोहन सिंह से हार का सामना करना पड़ा था.
‘महज चार हजार खर्च कर लूटन सिंह बने थे विधायक’
1977 में औरंगाबाद विधानसभा सीट पर इंदिरा गांधी के विरोधी लहर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से चुनाव जीतने वाले रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह के अजीज मित्र रहे औरंगाबाद के व्यापार मंडल अध्यक्ष व उन्थू गांव निवासी महेश्वर सिंह ने बताया कि महज चार से पांच हजार रुपये की खर्च में रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू विधानसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. उन्होंने उस वक्त के माहौल को याद करते हुए कहा कि पहले सोशल मीडिया का जमाना नहीं होता था. चिट्ठी-पत्री और एक दूसरे से संदेश का अदान-प्रदान होता था. चुनावी सभा व बैठक के लिए गांव-गांव में सूचना भेजी जाती थी. समय व तिथि तय होता था. उस वक्त वे उन्थू पंचायत के सरपंच व पैक्स अध्यक्ष थे. करमा के जैन सिंह ने लूटन बाबू से उनकी दोस्ती करायी थी और यह दोस्ती ताउम्र रही. 1977 के चुनाव में नेता नहीं फकीर है… देश का तकदीर है का नारा दिया गया. गांधी मैदान में सभा हुई. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ऐलान किया. चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई. जनता का भरपूर समर्थन मिला, जिसके बाद तत्कालीन विधायक बृजमोहन सिंह को हराकर लूटन बाबू विधायक बने. पहले न वोटरों में पैसे का लालच था, न खरीद फरोख्त की बात होती थी. जनता में लूटन बाबू की लोकप्रियता और उनके व्यक्तित्व घर कर गया था. सादगी और संघर्ष के लिए वे प्रतीक थे. चुनाव जीतने के बाद जनता के लिए जी-तोड़ मेहनत किया. विकास की लकीरें खींची. इसका परिणाम हुआ कि 1980 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी होते हुए भी जीत दर्ज की. लूटन बाबू आज दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी विकासात्मक इरादे के लोग आज भी कायल है.
ईमानदारी और स्वच्छ छवि बाबूजी की थी पहचान: सुनील
औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र का 1977 व 1980 में और 1989 व 1991 में औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह के बड़े पुत्र सुनील कुमार सिंह ने कहा कि ईमानदारी और स्वच्छ छवि बाबूजी की पहचान थी. गरीब-गुरबो के साथ खड़े रहते थे. उनकी लोकप्रियता और व्यक्तित्व से हर कोई कायल था. 1977 में देश भर में जनता पार्टी की लहर थी. कांग्रेस पार्टी को उम्मीदवार के लाले पड़े थे. उस वक्त उन्हें कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया. आम लोगों में एक धारणा बन गयी कि लूटन बाबू ही जनता के आवाज को बुलंद कर सकते हैं. हुआ भी वही. जनता का आशीर्वाद मिला और वे विधायक चुने गये. विपक्ष को भी मजबूती प्रदान की. पहली बार जनता को अपने कर्तव्यो की पहचान हुई. जनता में लूटन बाबू की छवि मसीहा के तौर पर बनी. यही कारण था कि 1980 के चुनाव में निर्दलीय जीत दर्ज की. 1989 और 1991 में वे जनता के भरोसे पर खरे उतरे और लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बने. बाबूजी हर दिन जनता का दरबार लगाते थे. उनका अधिकांश समय फरियादियों की समस्याओं के समाधान में ही गुजरता था. औरंगाबाद जिले में सड़कों का जाल बिछवाया. यात्री सुविधा के लिए कई ट्रेनों का ठहराव कराया.आज भी लोग उन्हें याद कर उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेते हैं.



