कपड़ा उद्योग में क्यूसीओ रोलबैक: भारत का कपड़ा उद्योग अब बड़ी राहत की सांस ले सकता है। सरकार ने 14 ऐसे कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पादों पर लगाए गए सख्त गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) हटा दिए हैं, जो कारखानों की लागत और निर्यात को काफी प्रभावित कर रहे थे। अब उत्पादन आसान होगा और छोटे-बड़े उद्योगों को अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पाद बेचने का बेहतर अवसर मिलने जा रहा है।
यदि QCO हटा दिया जाए तो क्या बदल जाएगा?
केंद्र सरकार ने रसायन और उर्वरक मंत्रालय के माध्यम से 14 ऐसे उत्पादों पर लगाए गए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) को हटाने का फैसला किया है, जिनका उपयोग मुख्य रूप से कपड़ा उद्योग में किया जाता है। इनमें रासायनिक मध्यवर्ती, सिंथेटिक फाइबर और पॉलिमर रेजिन शामिल हैं। यह कदम उन फैक्ट्रियों के लिए राहत भरी खबर है, जो अमेरिकी बाजार में भारी टैरिफ और निर्यात ऑर्डर रद्द होने के कारण दबाव में थीं। अब इन कच्चे माल और इंटरमीडिएट्स पर सख्त मानक लागू नहीं होंगे, जिससे इनकी कीमतें कम हो सकती हैं और परिचालन आसान हो सकता है।
क्यूसीओ को क्यों हटाया गया?
नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन क्यूसीओ को ज्यादातर कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पादों पर लागू किया गया है, जबकि उनका मुख्य जोखिम उपभोक्ताओं के लिए नहीं था। रिपोर्ट के मुताबिक, इन मानकों के कारण कच्चे माल की कीमतें 10-30 फीसदी तक बढ़ गईं और कई एमएसएमई इकाइयों को अपनी उत्पादन क्षमता से कम पर काम करना पड़ा. इसके अतिरिक्त, विदेशों से आयातित फाइबर और धागे में काफी समय लगता था और केवल सीमित प्रमाणित आपूर्तिकर्ता ही उपलब्ध थे।
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निर्यात पर असर
कपड़ा और परिधान का सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है, जो भारत के कुल निर्यात का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा है। अगस्त 2025 से लागू 50% अमेरिकी टैरिफ के कारण सितंबर में कपड़ा और परिधान निर्यात में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई थी। क्यूसीओ को हटाने के साथ, उम्मीद है कि लागत कम हो जाएगी और निर्माता अमेरिकी और अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होंगे।
क्या बाकी क्यूसीओ भी हटा दिए जाएंगे?
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि जल्द ही कुछ और क्यूसीओ जैसे विस्कोस फाइबर और टेक्सटाइल मशीनरी पर भी नियम हटाए जा सकते हैं। नीति आयोग ने कुल 27 उत्पादों के लिए QCO को हटाने की सिफारिश की थी, जिनमें से कई अभी भी लंबित हैं। इस कदम से न केवल एमएसएमई को लाभ होगा, बल्कि भारत की “मेड इन इंडिया” विनिर्माण और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ेगी।
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