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Tuesday, November 11, 2025
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काल भैरव जयंती 2025: इस बार बन रहा है ग्रहों का महासंयोग, करें भगवान शिव की ये विशेष पूजा


साल 2025 में कालभैरव जयंती 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस बार यह त्योहार बेहद खास होगा, क्योंकि इस दिन अष्टमी तिथि, ब्रह्म योग, शुक्ल योग और आश्लेषा नक्षत्र जैसे शुभ संयोग एक साथ बन रहे हैं। यह दुर्लभ योग ध्यान, तांत्रिक पूजा और भैरव पूजा के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।

कालभैरव जयंती कब है? (काल भैरव जयंती 2025 कब है)

इस साल कालभैरव जयंती की अष्टमी तिथि 11 नवंबर को रात 11:08 बजे शुरू होगी और 12 नवंबर को रात 10:58 बजे तक रहेगी.

इस पूरे काल में भगवान भैरव की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। विशेषकर रात्रि की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है, क्योंकि रात्रि का समय भैरव साधना के लिए सर्वोत्तम समय होता है।

इस दिन बन रहे हैं शुभ योग

12 नवंबर को होगा कई ग्रह-नक्षत्रों का दुर्लभ संगम –

शुक्ल योग – यह सुबह 08:02 बजे तक रहेगा, जिससे मन की पवित्रता और सकारात्मकता बढ़ती है।

ब्रह्म योग – शुक्ल योग पूरे दिन रहेगा, जो ज्ञान, ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

बालव एवं कौलव करण – पूजा और व्रत आरंभ करने के लिए दोनों करण शुभ माने गए हैं।

इन सभी योगों के संयोग से यह दिन आध्यात्मिक जागृति एवं सिद्धि प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली बन जाता है।

नक्षत्र एवं ग्रह स्थिति का प्रभाव

इस दिन आश्लेषा नक्षत्र रहेगा, जो शाम 6:35 बजे तक रहेगा। यह नक्षत्र तांत्रिक साधना, ध्यान और भैरव पूजा के लिए अनुकूल माना जाता है।

इसके प्रभाव से साधक का मन स्थिर होता है और ध्यान में गहराई आती है।

शाम के बाद चंद्रमा के सिंह राशि में आने से भक्तिभाव के साथ आत्मविश्वास और साहस भी बढ़ेगा। वहीं सूर्य तुला राशि में रहेगा और संतुलन और विवेक का संदेश देगा।

कालभैरव जयंती पर ऐसे करें पूजा

  • भगवान शिव और कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं।
  • रात्रि के समय कालभैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करें।
  • इस दिन कुत्तों को खाना खिलाना बहुत शुभ माना जाता है, इससे भैरव की कृपा प्राप्त होती है।
  • काले तिल, सरसों के तेल का दीपक और नारियल चढ़ाएं।

ज्योतिषीय दृष्टि से क्यों खास है यह दिन?

इस बार अष्टमी तिथि बुधवार के दिन पड़ने से बुध ग्रह की शक्ति से भैरव साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा। यह संयोग आत्मविश्वास, बुद्धि और भयमुक्त जीवन का आशीर्वाद देता है। शुक्ल और ब्रह्म योग का मिलन साधक को आध्यात्मिक शक्ति, आत्मसंयम और ज्ञान की ओर ले जाता है।

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